मुझको मेरी तन्हाईयाँ अक्सर बुलाती हैं,
और फिर मुझे तेरी यादों से नहलाती हैं।
वो जो खुशबु का झोंका गुज़रा मेरे पास से ,
तेरी जुल्फों की कैद से छूटी हवा कहलाती हैं।
आँखें खुली रहती हैं तो दिखता नहीं कुछ भी ,
बंद आँखें ही तो मुझे सबकुछ अब दिखलाती हैं।
चीड़ों की चोटी पर बरसे चन्दन जैसी जो चांदनी,
एक आशिक के चेहरे पर माशूक का नूर कहलाती हैं।
जो भी जख्म मिले हैं मुझको तेरे सजदे में जानम,
तुझको छूकर आती हवा उन जख्मों को सहलाती हैं।
भटक रहा हूँ नील गगन में आवारा बादल सा मैं,
तेरी यादें टकरा कर उनको सावन सा बरसाती हैं।
-नीहार
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