रविवार, 30 नवंबर 2008

तुम्हारे साथ के दो पल

आँखें हैं छल छल,चाहें तुम्हारे साथ के दो पल,
यादों के सिलसिले हैं देखो आए दल बदल।
मुस्कुराना चाहे फितरत ही रही आंखों की मेरी,
किसने देखा उनके अन्दर है भरा कितना ही जल।
मैंने बस यादों में तेरी ही तस्वीर को है घर दिया,
कोई भी तूफ़ान इनको कर ना पाया है बेदखल।
दिल मेरा गाता रहा है गीत तेरे प्यार का हरवक्त,
भ्रमर से लेता रहा वो प्यार की हर धुन सरल।
मैं मुसाफिर तुम मुसाफिर और रास्ते चलते गए,
पांव के छाले भी देखो खिल गए हैं ज्यूँ कमल।
नीहार की दुनिया में बस हर तरफ़ है तेरा ज़माल,
दिल में तेरे ख्यालों से है मची जीवन की हलचल।









रविवार, 23 नवंबर 2008

बुझी बुझी सी रात है ,खोया खोया सा चाँद,
टूट कर बिखरने लगा है मेरे सब्र का हर बाँध।
बादलों में छिप कर क्यूँ नही खेलते हो मुझसे,
हवाओं के परों पे ,क्यूँ नही मुझको हो झुलाते,
न हँसते हो दिन को, न रात तुम हो मुस्काते,
आज कल तुम मेरे गीत क्यूँ नही हो गाते,
सुरह हुआ है मद्धम, ढलने लगी है सांझ.....
बुझी बुझी सी रात है, खोया हुआ है चाँद....