रविवार, 27 मार्च 2011

कुछ मीठी कुछ खट्टी

वो तुमको इतना चाहता है की -

खुदा बना देता है,

तुम उसको चाह के -

कम से कम इंसान तो बना डालो।

*******************************************पूर्ण समन्वित

यूँ पलकों पे ,

ख्वाब उतर जाने दो -

आवारा बादल सा ,

भटक रहा मैं -

मुझको अपने घर जाने दो।

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गर्मियों के मौसम में,

कुछ यूँ किया जाए -

आपकी आँखों के समंदर में,

कुछ पल तैर लिया जाए।

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आजकल वो -

नकाब के बिना ही निकलता है...

सुना है -

आफताब ने अपना काम,

उसे आउटसोर्से कर दिया।

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यमराज ने -

जब से खोल रक्खा है,

इंडिया में अपना कॉल सेंटर -

रोंग नंबर की तादाद,

बढती ही जा रही।

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म्यूजिक कम्पोजर्स ने -

जब से धुन सुना के ,

गीत लिखवाये....

कोयलें भूल गयीं -

गा गा के कूकना।

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बुधवार, 16 मार्च 2011

मन मेरा आवारा बादल,घूमे इधर उधर है,
फूल फूल पत्ते पत्ते से पूछे सजन किधर है।
इंतज़ार कर कर के आँखें कब की निचुर गयी,
ह्रदय की धमनी धरक धरक कर देखो सिकुर गयी,
ना चिठिया ना कोई पाती, ना ही कोई ख़बर है,
फूल फूल पत्ते पत्ते से पूछे सजन किधर है।
तुम बिन मेरे जीवन में सब कुछ है मुरझाया सा,
रात अगर बेचैन रही तो दिन भी है बौराया सा,
भूल गया हूँ अपनी मंजिल,खोया हुआ डगर है,
फूल फूल पत्ते पत्ते से पूछे सजन किधर है।
चीड़ वनों की मदमाती गंधों ने तुमको याद किया,
झरनों के कल कल निनाद ने तुमसे है फरियाद किया,
तुम बिन जो मेरा है वो ही उनका भी हुआ हसर है,
फूल फूल पत्ते पत्ते से पूछे सजन किधर है।
ठंडी मस्त बयारों ने भी कह दिया मुझको मेरा हाल ,
जीव जंतु सब प्राणी की आंखों से झांके यही सवाल,
कौन है वो शमा जिस पर तू जलता रोज़ भ्रमर है,
फूल फूल पत्ते पत्ते से पूछे सजन किधर है।
एक तुम ही मेरे हो अपने बाकी सभी पराये हैं,
कुछ उखरे उखरे से हैं,और कुछ कतराए हैं,
रूठी हुयी हवा है तुम बिन,रूठा हुआ शज़र है,
फूल फूल पत्ते पत्ते से पूछे सजन किधर है।
तस्वीरों से दिल बहलाता माजी में मैं जीता हूँ,
यादों के धागों से मैं तो चाक जिगर को सीता हूँ,
तुम बिन जीवन सूना सूना, जैसे कोई कहर है,
फूल फूल पत्ते पत्ते से पूछे सजन किधर है।
अब तो आ जाओ की मेरे जीवन को श्रृंगार मिले,
चिड़ियों को मीठी तान और फूलों को फ़िर बहार मिले,
तुमसे ही तो शाम है मेरी, और तुमसे ही हुआ सहर है,
फूल फूल पत्ते पत्ते को कह दूँ सजन इधर है।
(इस कविता को दुबारा यहाँ प्रस्तुत कर रहा,पूर्व में इसे अगस्त २००८ में प्रस्तुत किया था।)

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

आओ फिर गीत सुनाएँ तुमको....

तुम हो
तुम्हारा ख्याल है ,
और -
चाँद रात है....
जुगनुओं को -
पकड़ने की कोशिश करता ,
मैं -
और मेरे पीछे ,
भागती तुम....
चीड़ों की लम्बी सी कतार,
और -
उसके बीच की,
सर्पीली सी सड़क....
और उसपे -
नंगे पाँव भागते,
हम और तुम....
तुम्हारे होठों को -
चूमती हुयी ,
लचीली गुलमोहर की डाल....
और -
अमलताश के फूलों का,
बिखरा तुम्हारे चेहरे पर-
वो पीला सा गुलाल...
तुम्हारे क़दमों के नीचे ,
बिछा-
जक्रंडा के बैगनी फूलों का,
ख़ूबसूरत गलीचा....
ये मेरा ख्याल है,
या -
बसंत का पदार्पण ...
तुम्हारी साँसों की खुशबु है,
या -
मेरे ही ह्रदय का स्पंदन...
मदमाती सी हवा -
बाजरे की खनक लेकर,
नाच नाच जाती...
मेरी पलकों को ,
तुम्हारे अधरों ने शायद -
चूमा है अभी...
मैं नींद के दरवाज़े ,
ख्वाब की दस्तक सुन रहा।
तुम हो,
तुम्हारा ख्याल है -
और चाँद रात है.....
***************************************
आओ -
फिर गीत सुनाएँ तुमको ...
तेरी पिपनियों को ,
सितार के तार कर लूँ...
और -
अपनी उँगलियों को,
कर लूँ मैं मिजराब...
और फिर ,
बैठ जाएँ-
किसी झील में ,
पाँव दिए हम ....
और फिर,
लहरों में फेंकते रहें -
अपने ख्वाब की धुन।
और फिर,
तरंगों को -
अपनी उँगलियों की पोरों से उठा कर,
डाल दूँ तेरी आँख में -
मैं बेसाख्ता...
और फिर मेरी धुन पे,
रक्स कर उठेंगी -
तेरी आँखों के समंदर में,
लहराती शराब...
एक नशा सा,
छा जायेगा हर शू -
हर तरफ ,
जिंदगी धनक ओढ़ के -
नाच जायेगी...
सच कहता हूँ -
की फिर,
रुखसत नहीं लेगी बहार -
जिंदगी को जिंदगी -
मिल जायेगी।
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(महादेवी वर्मा से क्षमा याचना समेत)
जो तुम आ जाते एक बार ....
मन हो जाता सागर अथाह,
हो जाती आसान मेरी ये राह,
झंकृत हो जाता मन का सितार,
जो तुम आ जाते एक बार ....
चांदनी सिक्त होती हरेक रात,
दिन ले आता खुशबु की परात,
जीवन में हर पल होती बहार ,
जो तुम आ जाते एक बार...
खिल जाते हर तरफ शतदल कमल,
हिमखंड भी जाता फिर पिघल पिघल,
प्रकृति फिर कर लेती नव श्रृंगार,
जो तुम आ जाते एक बार....
मन हो जाता यमुना का तीर,
पावन हो जाता मेरा ये शारीर,
बाहें हो जाती कदम्ब की डार,
जो तुम आ जाते एक बार...

बुधवार, 9 मार्च 2011

ये न थी हमारी किस्मत .....

(मिर्ज़ा ग़ालिब से क्षमा याचना समेत )
ये न थी हमारी किस्मत की विसाल ए यार होता,
हर जनम तू मेरी होती और मैं तेरा नीहार होता।
रात भर मैं सोता तेरी जुल्फों की चादर ओढ़ कर,
मेरी आँख जब भी खुलती,बस तेरा ही दीदार होता।
तेरी बांहों में सिमट कर मैं पिघल पिघल सा जाता,
तेरी साँसों में रच बस कर मैं खुशबु ए बहार होता।
तेरी पलकों के साए तले ही मेरा ख्वाब रंग पाता ,
तेरी कातिल निगाह का बस मैं ही एक शिकार होता।
तुझे ढूंढता रहा मैं हर शहर हर गाँव हर गली में ,
मुझपे छाया हुआ हरदम बस तेरा ही खुमार होता।
मेरे काँधे से लगी हुयी तुम जब थक हर के सो जाती,
तुझको घेरती हुयी मेरी ये बाहें शज़र ए देवदार होता।
तेरी आँखों से जो पीता हूँ तो जी जाता हूँ हर पल को,
तू मेरी ज़िन्दगी होती जानम और मैं तेरा प्यार होता।
-नीहार
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तुम्हारी बाहें हैं हज़ार राहें
हरेक राह मुझे तुम तक है ले जाती।
जहाँ नहीं तुम सब रास्ते हैं गुम
लौट लौट जाती वहां से मेरी निगाहें।
तुम सिर्फ हमको चाहो हम सिर्फ चाहें तुमको,
मोहब्बत को मिल जाये फिर खुशबु की पनाहें।
न कोई शिकवा न गिला कोई हमको,
न आंसू बहे और न ही निकले कोई आहें।
तमन्ना है बस इतना की तुम सामने रहो बैठी,
तुम मुझको सराहा करो और हम तुमको सराहें।
-नीहार
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(यह छंद पूर्व में भी सम्पादित किया गया है पर इसमें शुरू की दस पंक्तियों के बाद नवल पंक्तियाँ हैं.पाठक चाहें तो दिनांक २८ फरवरी की रचना का पुनः पठन कर आस्वादन कर सकते...कुछ फर्क तो मिलेगा स्वाद में.)
सांस -
महकी हुयी -
खोजती है तुम्हे,
मन के अन्दर-
समर्पण की जगे भावना ।
तुम -
जो होते हो पास -
तो -
मन की वीणा पे फिर,
करता रहता हूँ मैं -
नित्य दिन साधना।
दूर -
करती हो तुम
मेरे मन का तिमिर,
हर-
लेती हो तुम
मेरी हरेक यातना।
मांगता हूँ तुम्हे
रात दिन -
मैं दुआ में,
मंदिर में-
ईश्वर से करता,
मैं तेरी याचना।
-नीहार
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सुबह -
निचोड़ी हुयी रात का दर्द,
मेरी आँखों से -
यूँ बहा.....
जैसे कि ,
बारिश में -
उफनती हुयी दरिया...
जैसे कि,
खिलते फूल से -
पिघलती खुशबु....
जैसे कि,
मन के अन्दर -
घुमड़ता कोलाहल....
जैसे कि -
किताब के पन्नो में -
बिखरी चाँद हर्फें....
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शनिवार, 5 मार्च 2011

कुछ खुशबु जैसी बातें....

तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और मदमाती सी सुबह है.....
सामने ठाठें मारता विशाल समुद्र,
जिसकी लहरों पे डोलती छोटी छोटी नौकाएं -
जैसे नीले आसमान में टिमटिमाते सितारे...
झिलमिल झिलमिल से।
लहरें चांदी की परात सी रौशनी का फानूस बनी हुयी...
दूर उफक पे खुर्शीद का जादू खून सा रंग लाता हुआ -
या जैसे कोई नवब्याहता के कनक से दमकते चेहरे पे,
जैसे गुलाल का विस्तार...
या जैसे किसी ने सागर की मांग में सिन्दूर की लाली सजा दी हो।
बगुलों की जमात उड़ उड़ कर-
सूरज को लीलने की कोशिश करती हुयी....
हवा मद्धम सी गुनगुना कर ,
तुम्हारी खुशबू लाती है ...
और मैं जी उठता हूँ।
मेरी सांसें पुखराज हो समुद्र की लहरों पे,
सूर्य किरणों की पाजेब बाँध रक्स करने लगती हैं...
यादें मोती बन पेरी पलकों पर ,
जुगनुओं सा मचलने लगती हैं।
मैं तुममे उसी तरह खो जाता हूँ,
जैसे हवा में फैली हुयी धूप।
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और आँखों में बंद तुम...
धड़कन है, सांसें हैं और उनमे बसी तुम।
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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और कोहसार में लिपटी सर्द रात है....
घने पेड़ अपनी परछाइयों को ओढ़ कुनमुना रहे,
उनके पत्ते ठण्ड में बर्फ हो काले होते जा रहे
तुम्हारी खुशबु मुझे कई कई रंगों में ढूंढती है,
शाख सोये सोये से हैं...
पूरा शहर सुनसान और चौराहों पर अलाव के धुओं की तपिश,
मुझे खींच लेती है अपनी ओर...
मेरी आँखें उन धुओं को पी लेती ,
और मचलती हुयी दरिया हो जाती।
सारा का सारा मंज़र राख हो जाता...
तबियत भी उदास हो जाती।
ऐसे में तुम्हारी याद -
दवा बन कर मेरे पास होती।
रात भर सोया रहा ओढ़े हुए यादों का लिहाफ....
नम थी आंखें पर फिर भी दिख रहा था हमें साफ,
तुम थी मेरी आँखों के आगे ओढ़े हुए बर्फ ,
मैं था अपने लब पे तुझे नम किये हुए...
हर आहट में तेरे क़दमों के फूल मैं चुन रहा -
मैं अपने दिल में तेरी धडकनों को सुन रहा।
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और अलसाई सी सुबह है...
मेरी पलकों पे रात शबनम सी बिखरी हुयी है।
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तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और बर्फ सी रात है....
क्गंद्नी खुद को कुहसार में तब्दील कर चुकी,
चारों तरफ सिर्फ कुहासे ही कुहासे -
पेड़ों की पत्तियां सिहर सिहर खुद में सिमटी जा रही,
फूलों का मुंह सूजा हुआ....
उन्हें धूप ने नहीं...कुहासों ने छुआ है।
इस ठिठुरती रात मेंतुम्हारे साँसों की गर्मी -
मुझे एक अलाव से उठती गरम हवा सी नहला जाती है...
मैं पूरी तरह खिल जाता हूँ -
ठीक उसी तरह जैसे जाड़े की सर्द सुबह...
किसी गुलाब को धूप ने छू लिया हो।
मेरा खिलना - गुलाब का खिलना....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और सुबह की आँख में धूप की तपिश का इंतज़ार है ....
और खिले गुलाब की पंखुड़ियों पे बिखरा हुआ ये नीहार है।

बुधवार, 2 मार्च 2011

तुम्हारे लिए ...

बादलों से तुम्हारी जुल्फों की खुशबु चुरा रहा,
सांझ को उँगलियों की पोरों से -
तेरी आँख में काजल सा सजा रहा।
ये जो टप टप सी बरसती हैं पानी की बूँदें ,
उनकी धुन पे आवारा मन मेरा ताल दे रहा ।
क्यूँ लगता है यूँ मुझको तुम कह रही मुझसे,
मैं अपने दिल की धडकनों से तेरा हाल ले रहा।
जिस पल मेरी बात से शर्मा सी गयी तुम,
उस पल तेरे चेहरे का मैं गुलाल ले रहा।
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सुबह सुबह चाँद के बुझते ही,
तेरी यादों का मशकबू जलाता हूँ...
और उसके धुएं की खुशबु में,
अपने अज़ाब से निजात पाता हूँ।
तुम्हारी याद है की दिए की लौ सी -
थरथराती रहती है,
और मैं उसे अपनी दोनों पलकों की,
ओट दे बुझने नहीं देता...
ये याद ही है तुम्हारी,
जो मेरे बिस्तर की सलवटों में चस्पां है...
मैं अपने जीस्त की ऊष्मा से -
उस बर्फ को पिघलाता हूँ ...
और फिर मेरी आँखें ,
उफनती दरिया हो जाती।
मेरी यादों में तुम्हारा अक्स और,
मुझे धूप करता तेरे लम्स का खुर्शीद....
हर पल तुम्हारे चाँद से चेहरे को -
अपने हाथों के बीच गुलाब होते देखता हूँ....
हर पल अपने दिल को -
तुम्हारी एक झलक के लिए ,
बेताब होते देखता हूँ।
तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...
टिमटिमाते सितारे हैं और खुशबु ए जज़्बात है।
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अपने ख्वाब का ताना बना बुन रहा -
पलकों से आँख के मोती चुन रहा....
कुछ गीत लिखे हैं मेरे मन के पटल पर -
आँखें बंद किये मैं उनको सुन रहा।
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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...
एक खामोश हवा का दर्द है,
जो बंशी की धुन सा बिखर रहा।
ओस बूंदों से नहाई चन्द्र किरणे,
फूलों के बदन पखार गयीं हैं...
सिहरती रात -
यादों का अलाव जलाये हुए है।
मेरी हथेली पर आँख से टपक कर,
एक अश्रु बूँद मोती हो गया....
आओ तुम्हारी माँग में,
मैं वो मोती सजा दूँ ।
तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और ठिठुरती सी रात है...
आँखें हैं,नींद है और बस तुम्हारा ख्वाब है।
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