मंगलवार, 22 जनवरी 2013

चलो समुद्र हो जाएँ.....

आह ये फ़ेनिल सा समुद्र -

 कुछ भी नहीं रखता अपने भीतर ।

 जो भी वो पाता है....

 पहुंचा जाता है तट पर -

 उड़ेल देता है निःस्वार्थ हो ,

 सब कुछ वो - सीप......मोती....माणिक....मुक्ता...

 सिर्फ देना जानता है समुद्र ।

 चलो, कुछ पल के लिए -

 हम समुद्र हो जाएँ.....

 अथाह गहराई लिए,

... कुछ भी न रक्खें अपने भीतर...

 बाँट दें सब निःस्वार्थ हो।

 जो भी हो पास,

 जितना भी हो पास.....सब बाँट दें.....

-नीहार (कोवलम बीच पर बिताए कुछ क्षण,जनवरी 8,2013)