मंगलवार, 27 अगस्त 2013

हर किसी का पाँव यहाँ कीचड़ में है पगा .......

जुगनु सा जल बुझा और तू तारे सा टिमटिमा,
सूरज से चुरा कर रौशनी तू चाँद सा जगमगा ।
कोशिश हो कि हमको कभी अंधेरे न लील लें,
हाथों में ले  मशाल तू और उसे दूर तक भगा ।
क्यूँ खोजता है तू यहाँ हर चेहरे में अपना अक्स,
ये यंत्र युग का शहर है यहाँ होता न कोई सगा ।
आजकल के बच्चों की फितरत ही है कुछ ऐसी,
दिन को सोते घोड़े बेच और फिर करते रतजगा ।
मैं ढूँढ़ रहा हूँ ऐसा शख्स पैर जिसके मैं छूँ सकूँ,
पर हर किसी का पाँव यहाँ कीचड़ में है पगा ।
बस दो ही तरह के राजनीतिज्ञ मिलते यहाँ हमें ,
कोई लूटता है खुलकर ,किसी ने चुपके से ठगा ।
मैं कभी भी किसी बात की परवाह नहीं करता ,
मैं वही सब करता ,जो सदा मुझे ठीक है लगा ।
संघर्ष रत हरएक युवक को है ये मेरा आशीर्वाद ,
काँटों में रह के खिल और तू हीरे सा जगमगा ।
- नीहार ( चंडीगढ़,अगस्त २७,२०१३ )

रविवार, 25 अगस्त 2013

कुछ उक्ति कुछ कटुक्ति......

मनुज जनम जौं लीजिये,
कीजिये कुछ ऐसा काम ,
सुमार्ग पर चलते रहिये,
ले कर प्रभु का बस नाम ।
मन को साधे सब सधे,
तन को साधे वो निरोगी,
जो धन को भी साध लै,
उस से बड़ा न कोई जोगी।
करत करत उपवास के ,
शरीर होइ जात दुबलान,
हड्डी पसली सब दिखन लगे,
और गायब हुई मुस्कान ।
जात न पूछो साधु की ,
सब व्यभिचार में हैं लिप्त,
निस दिन धन अर्जन करे,
फिर भी मन ना होये तृप्त । 
चोर उचक्के बेईमान सब,
गद्दी पे हुए हैं शोभायमान,
अपना हित साधने के लिये,
पक्ष प्रतिपक्ष हुये एक समान ।
नारी जहाँ सदा थी पूजिता,
वहाँ नित होए उनका अपमान,
फिर किस मुँह से हम कह रहे,
कि है मेरा ये भारत महान ।
सोने चाँदी का हर मन्दिर में
होता नित दिन ही व्यापार,
देश दुर्दशा पे फिर शोर क्यों,
और क्यों मचा हुआ हाहाकार ।
खंड खंड हुआ उत्तराखंड और,
क्षत विक्षत हुआ हर तीर्थस्थान,
हर घायल की गति लुटी हुई,
और लाचार हुआ है भगवान ।
सीमा पर चल रही गोलियाँ,
होता घायल हर वीर जवान,
शयनागार में सुख की नींद,
ले रहा है सारा हिन्दुस्तान ।
घोटाला जो जन  नित करे ,
वो पाये सरकार से सम्मान,
जो दुंदुभी बजा पर्दाफाश करे,
उसका नित दिन होय अपमान ।
हिन्दू मुस्लिम लड़ रहे और,
यहाँ लड़ रहे सिक्ख ईसाई,
जाति धरम के नाम पर रोज,
यहाँ खोदी जाती है नई खाई ।
बच्चों का लालन पालन करे ,
जो माँ बाप करा  दुग्ध पाण,
एक पानी की बूँद को तरस,
वो बुजुर्ग फिर तज देते प्राण ।
बिजली बिन सब सून है,
क्या शहर और क्या गाँव,
धूप भी खोज रहा है यहाँ,
अपने लिये ठंडी ठंडी छाँव ।
चोरों और बेईमानों का यहाँ,
है फलता फूलता साम्राज्य,
सत्य राह पर चलना यहाँ, 
हुआ दुष्कर और त्याज्य ।
बॅालीउड के हीरो सभी ,
फिल्मों में दिखते जैसे शेर,
रियल लाइफ में वे सभी,
पर होते हैं गीदड़ भेड़ ।
राम के नाम पर लूट है,
जो लूट सके वो है राजा,
"समय अभी" पर यह खबर,
है बिलकुल ताजा ताजा ।
निहरा करता बंद अपना,
ये निरा अनर्गल प्रलाप,
वरना आपको जगाने का,
उस पर लग जायेगा पाप ।
सोये रहिये  सुख चैन से,
बिकने दीजिये यह देश,
शून्य की खोज जहाँ हुई,
वह शून्य में हो रहा शेष ।।
- नीहार ( चंडीगढ़,अगस्त २५,२०१३)

बुधवार, 14 अगस्त 2013

इक छाँह की तलाश में


कई साल से मैं तन्हा इस शहर में रहा,
भटकता कभी रात कभी दोपहर में रहा।
मैं परिन्दों सा उडता रहा हवा में यूँ ही,
मछलियों सा तैरता मैं समन्दर में रहा।
लोग सोचते हैं जिन्दगी से मैं हँू हारा हुआ,
मेरा वज़ूद मगर ख़ुमारि ए जफर में रहा ।
उसे इश्तहार बन चिपकने की चाह थी,
वो िजस जगह भी रहा बस ख़बर मे रहा ।
सुर्खरु होते हैं लोग ठोकरें खाने के बाद,
ये सोच वो ताउम्र सबकी ठोकर में रहा ।
हैै हवा का झोंका बहना उसकी फितरत,
खुशबू बिखेरे  वो शाम ओ सहर में रहा ।
उसने सुना था कि उसकी आँख सीप है,
आँसू हो के कैद वो उसकी नजर में रहा ।
कोरे कागज़ पे लिखा था आँसू से पता तेरा,
मैं तुझको ढूँढता हर गाँव हर शहर में रहा ।
इक छाँह की तलाश में उमर भर नीहार,
तपती धूप में भटकता हुआ सफर में रहा ।
- नीहार (चंडीगढ, अगस्त १४,२०१३)


सोमवार, 12 अगस्त 2013

लचक जात हरसिंगार......

उचक उचक चलत नार,
लचक जात  हरसिंगार ।
मुसक मुसक देखि देखि,
दिल पर फिर करत वार ।
छम छम छम बरसे मेघ,
नाचत मयूर पंख पसार ।
कोकिल सी बोली सुन,
झंकृत मन का सितार ।
बैठी रही नदी के तीर,
करत पी का इंतजार ।
घँूघट से झाँकि झाँकि,
दूर करत हैं अंधियार ।
चंद्र समान मुखड़ा को,
तिल देत और निखार ।
नागिन सौं बल खात,
केश राशि कंठ हार ।
दिखला के एक झलक,
देती मेरा मन पखार ।
उसके एक दरस से ,
जीवन में आत बहार ।
 - नीहार