शुक्रवार, 25 जून 2010

मैं हवा हूँ चन्दन में घुला जाता हूँ

मैं हवा हूँ और चन्दन में घुला जाता हूँ,
बहता हूँ तो जगतों को सुला जाता हूँ।
वक़्त ने मुझको बनाया है कुछ ऐसा ,
की आँख में चुभता हूँ तो रुला जाता हूँ।
मन करता है तो बदली को उड़ा देता हूँ,
मन हो तो फिर मैं उसको बुला लेता हूँ।
बारिश की बूँदें जब भिगो देती है मन को,
में ख्याल बन के सावन में झुला देता हूँ।