दिल मे खुलूस और आँख मे दर्द लहरा रहा,
मेरे जज़्बात पे मेरे ही ज़मीर का पहरा रहा।
वो बहारों की कर रहा था ख़्वाहिश कबसे,
उसके हिस्से तो सूखे रेत का सहरा रहा।
न किसीकी सुनता है न कहता ही किसी से,
लोग कहते हैं की वो गूंगा रहा बहरा रहा।
तुम दरिया की तरह मचल के बहती रही,
वो समंदर सा बस अपनी जगह ठहरा रहा।
सुना है उसका कद हिमालय से भी ऊंचा है ,
और उसका गांभीर्य सागर से भी गहरा रहा।
15 टिप्पणियां:
‘मेरे जज़्बात पे मेरे ही ज़मीर का पहरा रहा।;
बढिया अभिव्यक्ति :)
'तुम दरिया की तरह मचल के बहती रही
वो समंदर सा बस अपनी जगह ठहरा रहा '
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खूबसूरत शेर ...अच्छी रचना
हर शेर लाजवाब है ! शुक्रिया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति एक - एक शब्द बोलते हुए |
सुन्दर रचना |
सुना है उसका कद हिमालय से भी ऊंचा है ,
और उसका गांभीर्य सागर से भी गहरा रहा।
बहुत खूब... हर शब्द गहरे और गहरे होते हुए... सुंदर प्रस्तुति
waah bhut sundar kabita likhi aapne..padhke man khush ho gaya..aapne to is kabita ke jarie acchhe acchho ki chhutti kar di hai...badhai...
वो बहारों की कर रहा था ख़्वाहिश कबसे,
उसके हिस्से तो सूखे रेत का सहरा रहा।
हर शेर उम्दा....एक से बढकर एक......
हार्दिक बधाई।
सरजी, लट्टू हुये जा रहे हैं आप की गज़लों पर। उम्दा ख्याल, वैसा ही आला दर्जे के अल्फ़ाज। आभार स्वीकार कीजिये।
सुना है उसका कद हिमालय से भी ऊंचा है ,
और उसका गांभीर्य सागर से भी गहरा रहा।..
Beautiful lines. Very meaningful and appealing.
Best wishes.
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दिल मे खुलूस और आँख मे दर्द लहरा रहा,
मेरे जज़्बात पे मेरे ही ज़मीर का पहरा रहा।
bahut hi badhiyaa
सागर सी ही लगी ....बेहतरीन ......आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|आभार|
बहुत सुंदर बड़े भाई विजय रंजन जी बधाई और शुभकामनाएं |ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
तुम दरिया की तरह मचल के बहती रही,
वो समंदर सा बस अपनी जगह ठहरा रहा
दरिया सा मचलना और समंदर सा ठहरना ..बहुत गहरे अर्थ संप्रेषित करता है ....सुंदर - सुंदर भावाभियक्ति
kya kahu?........ gahrai se bhi gahra.....achchhi lagi......
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