गुरुवार, 29 जनवरी 2009

यादों की तरह आके रुलाते क्यूँ नहीं,
मौसम की तरह मुझ पर छाते क्यूँ नही।
मैं तेरे सपनो में खो जाता हूँ हर घरी जानम,
उन् सपनो में ख़ुद को तुम पाते क्यूँ नहीं।
जिस तरह बिजुर्गों को नहीं छोरती है खांसी,
उस तरह तुम भी मुझे हो सताते क्यूँ नहीं.
वो जो एक गीत लिखा था मैंने तेरी ही खातिर,
उस गीत को मेरे लिए तुम फ़िर गाते क्यूँ नहीं।
मुझे देख देख बचपन में जो गुलाबी थे होते,
अब देख के मुझको तुम हो लजाते क्यूँ नहीं।
मैंने तुम्हे रक्खा है पलकों पे आंसू की तरह
तुम भी मुझे आँख में आंसू सा लाते क्यूँ नहीं।
मैंने तुझे पाया है अपने खुदा से नेमत में,
तुम भी मुझे अपनी दुआओं में पाते क्यूँ नहीं।

बुधवार, 7 जनवरी 2009

नए साल की नयी सुबह का पहला सलाम....तेरे ही नाम...

नए साल की नयी सुबह का पहला सलाम भेजूं,
कोयल की मीठी तान चुरा प्यार का पैगाम भेजूं।
महकती फूल से चुरा कर उस्सकी भीनी सी खुशबु,
हवाओं में उसकी खुशबु घोल बस तेरे ही नाम भेजूं।
गुल भेजूं गुलशन भेजूं और गुल-ऐ-गुलफाम भेजूं,
सागर भेजूं, दरिया भेजूं और जंगल तमाम भेजूं।
नगर भेजूं,क़स्बा भेजूं पूरा का पूरा गाम भेजूं,
सुबह भेजूं,दोपहर भेजूं, मयकश ये शाम भेजूं।
बसंत भेजूं, पावस भेजूं,सावन का जाम भेजूं,
जारे की धुप, गर्मी की बयार,बारिश झमाम भेजूं।
जो भी है मेरे पास वो चीज़ें सर- ऐ-आम भेजूं,
दिल भेजूं, जिगर भेजूं, अपनी साँसे तमाम भेजूं।