चुनावी सरगर्मियां फ़िर तेज़ हैं,
दाँव पर कुर्सियां और मेज़ हैं।
शासक तो सुनहरे भविष्य हैं ,
और शासित इतिहास के पेज हैं।
जो पिछड़ गए वो हिन्दुस्तानी हैं,
जो आगे हैं वे सभी अँगरेज़ हैं।
ख़ुद को देव संतान हैं वे कहते,
पर सारे के सारे नेता तो चंगेज़ हैं।
गिरगिट कहाँ टिक पाता उनके आगे,
वे सब के सब तो खानदानी रंगरेज़ हैं।
आप पढ़ लिख कर भी मूर्ख हैं,
वे तो बिना पढ़े भी सबसे तेज़ हैं।
आप के कारनामे तो कुछ भी नही,
उनके कारनामे तो हैरत अंगेज़
आपको तो कांटो का बिस्तर भी नही,
उनके लिए तो बिछी फूलों की सेज हैं।
****************************************
लोग संभावनाओं में जीते हैं,
और,
संभावनाओं में ही मर जाते हैं...
इसलिए ,
हाथ का रूपया दे कर लॉटरी का टिकट खरीद लाते हैं...
********************************************
सती प्रथा के समर्थन में उनके भाषण का एक अंश,
जो पति को जीवन भर रही जलाती ....
उन्हें भी लगे अग्नि-दंश।
************************************************
वे छुआछूत के विरोधी हैं,
जी हाँ....
वे छू अछूत के विरोधी हैं...
*****************************
सुना है सरकार ने रिज़र्वेशन पॉलिसी को
एक नया आयाम दिया है,
जिंदगी के साथ साथ अब,
मौत को भी रिज़र्व कोटे में लिया है...
****************************************
एक सभा में नेता के भाषण का एक अंश...
"हम इस धरती को स्वर्ग बनायेंगे
और आप सभी स्वर्गवासी कहलायेंगे"।
****************************************
अब्राहम लिंकन ने ,
प्रजातंत्र को प्रजा का,प्रजा के लिए ,प्रजा द्वारा शाषण बताया था...
पर आज तो इसके अर्थ का ही अनर्थ हो गया,
कल का प्रजातंत्र था....प्रजा का तंत्र...
और आज का ...
आदमी के खिलाफ आदमी का ...
एक खुला हुआ षडयंत्र...
*************************************
एक परीक्षा में प्रश्न था...
नेता का पर्यायवाची शब्द लिखें...
एक उत्तर पुस्तिका पढ़ परीक्षक गए काँप,
उत्तर लिखा था नेता का पर्याय है "सांप "।
*************************************
हर शब्-ऐ-गम की सुबह हो ये ज़रूरी तो नही.....
यही उनका सर्व प्रिय सिद्धांत था...
इसलिए शब्-ऐ-गम में डूबा उनका प्रान्त था...
*************************************
प्रधान मंत्री का आदेश था ....
की गरीबों की आँख अश्रुविहीन रहे,
किसी गरीब की आँख से आंसू न बहे।
सरकारी तंत्र ने प्रधानमंत्री के आदेश का
चुस्ती दुरुस्ती से पालन कर दिया,
सभी गरीब की आँखें निकाल ली,
और उनमे सोखता कागज़ भर दिया।
************************************
चलो चलें इक्कीसवीं सदी की और ,
यही उनका सबसे प्रिय नारा था ,
जोड़ तोड़ की कमी ने उन्हें मारा था...
**************************************