रात यूं ही देर तक चाँद फिर जलता रहा,
आसमां कतरा कतरा मोम हो पिघलता रहा।
वो अजीब शख्स है किसी की भी नहीं सुनता ,
उसकी खातिर ही सही मगर वो बदलता रहा।
उठ के गिरता रहा और गिर के उठता रहा,
रात और दिन मगर खुद ही वो संभलता रहा।
वो उफक पे बिखरे हुये है अपने सौ सौ रंग,
वो सूरज है अपने मुंह से धूप को उगलता रहा।
वो जानता है की चलने का नाम ही है ज़िंदगी ,
इस जिंदगी की खातिर रात दिन वो चलता रहा।
छले जाने का डर उसको सालता है हर समय ,
डर से निजात पाने को खुद को ही वो छलता रहा।
वो जानता है पानी के बिन तड़प उट्ठेगा आदमी,
उनकी प्यास बुझाने को वो बर्फ सा गलता रहा।
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पाजेब बज रही है या खनकता है तेरा कंगन
आँखें हैं की तेरी याद में बरसती हैं ज्यूँ सावन।
तुझको पाने की ख़्वाहिश कुछ इस तरह सुलगी,
की मन मेरा राम के बदले हो जाना चाहे रावण ।
तेरे बिना सब उदास सा लगे फीका लगे हर रंग ,
जो तू हो साथ तो फिर सहरा भी लगे मनभावन।
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वो अपनी आँख में खंजर छुपाए बैठा है ,
मेरी ही तबाही का मंज़र छुपाए बैठा है।
वो जानता है कि मुझे तैरना नहीं आता,
इसलिए खुद में वो समंदर छुपाए बैठा है।
जिसको भी देखता है सम्मोहित किए देता,
अपने अंदर वो जादू मंतर छुपाए बैठा है।
जिधर से भी गुज़रता है तूफान उठा देता है,
अपने सीने मे वो एक अंधड़ छुपाए बैठा है।
उसकी आँख में सबके लिए मोहब्बत है ,
अपने भीतर वो एक मंदर छुपाए बैठा है।
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचनायें।
sabhi rachanaye bhut hi bhaavpur aur sunder hai...
उठ के गिरता रहा और गिर के उठता रहा,
रात और दिन मगर खुद ही वो संभलता रहा।
वाह बहुत खूब.. तीनो रचनायें बहुत सुन्दर और भावपूर्ण हैं..
तीनों रचनाएँ बहुत खूबसूरत ...
यदि हर रचना अलग अलग पोस्ट की जाए तो हर रचना पर मुकम्मल ध्यान दिया जा सकता है ...यह मात्र एक सुझाव है ..
विविध आयामों में विचरण करता है आपका रचना संसार.. दिल को छूते शब्दों के साथ ..बेहतरीन शब्द रचना .. मन के एहसासोँ की अच्छी अभिव्यक्ति हुई हैँ। दिल की गहराइयों से जज्बात हैं शायद. अति प्रभावी ..
alag alag bhavnaaon ko bahut achchhe se prastut kiya hai aapne...........uttam rachana
विजय साहब, तीनों एक से बढ़कर एक। तीसरी वाली पहले कहीं पढ़ी सी लग रही है, जरूर पहले कहीं छप चुके हैं आप।
All the three are excellent creations! Thanks Vijay ji.
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