मंगलवार, 28 जनवरी 2014

ख्वाब ओ खयाल ........

सुबह - 
आँख के कोरों को नम पाया....
तुम -
बिना किसी आहट के,
ख्वाब सी उन्हें छू के -
वापिस लौट गयी थी ..
कई साल हो गये...
इन आँखों को,
यूँ ही खिड़कियाँ बने हुये-
और ,
कई साल हो गये...
तुम्हें -
फाख़्ता की तरह ,
आ के कुछ पल -
बैठना... गुटर गँू करना...
और फिर उड़ जाना -
खिड़कियों के पल्ले हिलते ही ।
मैंने -
न तो कभी ,
भूले से भी....
तुम्हें पकड़ने की कोशिश की -
और , न ही तुमने कभी ....
मेरी आँखों को -
अपना दड़बा करने की कोशिश की ...
यूँ ही -
हम रोज मिलते हैं ख्वाबों में,
और यूँ ही हम -
उजाले के फूटते ही,
बिछड़ जाते हैं....
मैं जानता हूँ -
जब जब मेरी आँखें ,
नम होती हैं -
तुम्हारे तकिये की नियति में,
भींगना लिखा होता है ।
मैं- 
अभी अभी तुम्हारे ख्वाबों में ....
तुम्हें छू कर,
वापिस लौटा हूँ ...
अपनी नम आँखें बन्द मत करना,
आँसू ही हैं-
ढ़लक जायेंगे ।
- नीहार ( चंडीगढ़,28 जनवरी 2014 - तुम हो, तुम्हारा खयाल है और चाँद रात है )

शनिवार, 4 जनवरी 2014

शुभकामना

तम हरे जो दीप उसका भविष्य है जलना,
बर्फ की नियति है उसका पानी हो गलना ।
बहती हुयी सलिला पतित पावनी कहलाती है,
हर नदी के भाग्य में है बस अनवरत चलना ।
सूरज की फितरत है कि वह दे रौशनी सबको,
खुद ही तप कर हर किसी के तमस को हरना ।
प्रगतिवादी व्यक्ति कभी पीछे मुड़ नहीं देखता ,
उसकी नियति में है लिखा सिर्फ आगे ही बढ़ना।
जो साल बीत गया उससे ये सबक तुम सीख लो,
'गर चलना हो तो बस तुम सन्मार्ग पे  ही चलना।
अगर हो आस्था भारत के संविधान में तुमको , 
तो सांसद के रूप में हर एक लायक को चुनना ।
आनेवाला साल हर्ष और उल्लास से हो भरा ,
काँटे में भी रह कर सदा तुम फूल सा खिलना ।
शुभकामना शुभकामना शुभकामना शुभकामना ,
शुभकामना शुभकामना शुभकामना ।।
- नीहार (चंडीगढ़, ३०/१२/२०१३ )