शनिवार, 11 मई 2013

उजली उजली धूप खिली है.......


उजली उजली धूप खिली है आँखों के गलियारे में,

तू जो चुप के  आन खड़ी है मेरे घर के द्वारे में।

रंग बिरंगी तितली उड़ती मेरे इर्द - गिर्द अक्सर ,

जब जब सोचा करता हूँ मैं बस तेरे ही बारे में।

फूल फूल पे शबनम हो रात बिखर जब जाती है,

ख़्वाब धुनि रूई सी हो जा मिलती चाँद सितारे में ।

कोयल की हर कूक मुझे तेरी याद दिलाया करती है,

मैं स्वतः फूट पड़ता हूँ तब झरनों सा हो फव्वारे में ।

दुनिया के उसूलों से डर डर कर वो चुप रह जाती है,

पर उसकी आँखें कह जाती हैं मुझको बात इशारे में।

गर्मी के मौसम मे अक्सर ठंडी सबा सी लगती वो,

गर्म दुशाले सी मुझ पर वो छा जाती है फिर जाड़े में।

मैं अक्सर उसकी आँखों में छल छल करता आँसू सा,

वो भी हरदम तैरती रहती मेरी आँख के पानी खारे में।

-नीहार (चंडीगढ़ , 21 अप्रैल 2013)

मंगलवार, 7 मई 2013

मेरी फैली हुयी बाहें....


ये मेरी –

फैली हुयी बाहें दो –

शाख़ पेड़ की हो,

कब से मुंतज़िर हैं तेरी.....

पतझड़ है तो क्या हुआ –

पलाश हो,

खिल तो सकते तुम –

मेरी शाखों पे.... ।

-नीहार ( चंडीगढ़, 2 अप्रैल 2013)