(महादेवी वर्मा से क्षमा याचना समेत....पहली पंक्ति उनकी है...तो सारा क्रेडिट भी उन्ही का)
जो तुम आ जाते एक बार.....
मन हो जाता सागर अथाह,
हो जाती आसान मेरी ये राह,
झंकृत हो जाता मन का सितार ।
जो तुम आ जाते एक बार.....
चांदनी सित होती हरेक रात,
दिल लाता खुशबू की परात,
जीवन में हर पल होती बहार।
जो तुम आ जाते एक बार.....
खिलता हर तरफ शत दल कमल,
हिम खंड भी फिर जाता है पिघल ,
प्रकृति करती फिर नया श्रृंगार।
जो तुम आ जाते एक बार....
मन हो जाता फिर यमुना का तीर,
पावन हो जाता मेरा अधम शारीर,
मेरी बाहें हो जाती कदम्ब की डार।
जो तुम आ जाते एक बार....
- नीहार
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बारिश में घूमोगे तो फिर धूप सरीखे खिल जाओगे,
फूलों की बस्ती में तुम खुशबु सा घुल मिल जाओगे।
जब रात कटेगी तन्हा तन्हा और मेरी याद सताएगी,
हर करवट तुम मुझको अपनी आँख से बहता पाओगे।
चाँद रात की तरह भटकती खुशबु की दरिया सी तुम,
मुझसे होकर गुजरोगे तो खुद को तुम नहाया पाओगे।
मैं तेरी जुल्फों में कैद हुआ हूँ जाने कितने जन्मों से,
तुम भी जानम खुद को मेरी आँखों में बंद पाओगे।
- नीहार
अपने विषय में क्या कहूँ....लिखना मुझे अच्छा लगता है...लिखता हूँ क्यूंकि जीता हूँ...
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
तुम हो तुम्हारा ख्याल है.....
पत्तियों की सांस उखड़ी है...फूल गौहर लुटाये बैठे हैं ...हम ने माना की चांदनी रात को आज हम अपनी आँखों में सजाये बैठे हैं...वो हमें नींद के गाँव ले जाएगा...हमारे कानों में मिसरी घोलेगा ...जब रात चादर में करवटें लेगा...एक ख्वाब धीरे से अपना वरक खोलेगा...
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रात भर मैं वहीँ था...शाकुंतल नगर के आस पास....मृग छौनो के पीछे भागती शकुंतला और उसे निर्निमेष देखता मैं दुष्यंत....वही पहाड़ों की श्रेणी के बीच बनी पूजा स्थली और नमन करते तुम और मैं...साथ साथ....सब कुछ भर गया मुझे सुखानुभूति से....फिर घंटों हम एक दूसरे की आँख में डूबे रहे....तलाशते रहे अपनी निजता को...मेरे काँधे पे तुम्हारा सर....तुम्हें घेरी हुयी मेरी भुजाएं...जैसे किसी वृक्ष को घेरी अमरबेल की लत्तर...अभी भी मुझको तुम्हारे घने गेसुओं की महक भिगोये हुए है....अभी भी तुम्हारी पलकों पे मेरी याद के फूल जुगनुओं से जल बुझ रहे....अभी भी हमारी सांसें एक दूसरे को जी रही.....तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...मुझे मिली तुम्हारे प्यार की ये अनुपम खैरात है।
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हे सुगंधे!मैं गंधमादन वन के विशाल तरुवर की विटप छांह में तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रहा....हवाएं शूल की तरह आ के मुझे चुभ रही...मन आशंकाओं से ग्रस्त हो रहा....हयबदन और दुष्टबुद्धि राक्षसों ने तुम्हे अपहृत तो नहीं कर लिया? मैं अपने तुरंग पे चढ़ दौर के तुम्हारे पास पहुचना चाहता हूँ....पर हाय री किस्मत....तुम शार्दूल वन के वतानिकुलित कक्ष में कैद और तुम तक पहुचने के सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए......तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और उदास सी धूप है....तुम्हारी चिंता में व्यग्र मन बना अंध कूप है.
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कतरा कतरा रात गल रही,
बूँदें बूँदें बरसे ओस ,
छिटक छिटक कर बरसे चांदनी,
शीतल मलय करती मदहोश।
याद तुम्हारी आती पल पल,
दिल में होती समुद्र सी हलचल,
तुम हो तो मन मृग सा चंचल,
बिन तुम सब हो जाता खामोश।
नयन तुम्हारे मतवाले से,
कर जाते मुझ पर जादू सा,
बाहें तेरी फूल की डाली,
भर लेती मुझको अपने आगोश।
-नीहार
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रात भर मैं वहीँ था...शाकुंतल नगर के आस पास....मृग छौनो के पीछे भागती शकुंतला और उसे निर्निमेष देखता मैं दुष्यंत....वही पहाड़ों की श्रेणी के बीच बनी पूजा स्थली और नमन करते तुम और मैं...साथ साथ....सब कुछ भर गया मुझे सुखानुभूति से....फिर घंटों हम एक दूसरे की आँख में डूबे रहे....तलाशते रहे अपनी निजता को...मेरे काँधे पे तुम्हारा सर....तुम्हें घेरी हुयी मेरी भुजाएं...जैसे किसी वृक्ष को घेरी अमरबेल की लत्तर...अभी भी मुझको तुम्हारे घने गेसुओं की महक भिगोये हुए है....अभी भी तुम्हारी पलकों पे मेरी याद के फूल जुगनुओं से जल बुझ रहे....अभी भी हमारी सांसें एक दूसरे को जी रही.....तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...मुझे मिली तुम्हारे प्यार की ये अनुपम खैरात है।
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हे सुगंधे!मैं गंधमादन वन के विशाल तरुवर की विटप छांह में तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रहा....हवाएं शूल की तरह आ के मुझे चुभ रही...मन आशंकाओं से ग्रस्त हो रहा....हयबदन और दुष्टबुद्धि राक्षसों ने तुम्हे अपहृत तो नहीं कर लिया? मैं अपने तुरंग पे चढ़ दौर के तुम्हारे पास पहुचना चाहता हूँ....पर हाय री किस्मत....तुम शार्दूल वन के वतानिकुलित कक्ष में कैद और तुम तक पहुचने के सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए......तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और उदास सी धूप है....तुम्हारी चिंता में व्यग्र मन बना अंध कूप है.
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कतरा कतरा रात गल रही,
बूँदें बूँदें बरसे ओस ,
छिटक छिटक कर बरसे चांदनी,
शीतल मलय करती मदहोश।
याद तुम्हारी आती पल पल,
दिल में होती समुद्र सी हलचल,
तुम हो तो मन मृग सा चंचल,
बिन तुम सब हो जाता खामोश।
नयन तुम्हारे मतवाले से,
कर जाते मुझ पर जादू सा,
बाहें तेरी फूल की डाली,
भर लेती मुझको अपने आगोश।
-नीहार
बुधवार, 15 दिसंबर 2010
है चिरंतन सत्य की मैं....
है चिरंतन सत्य की मैं चाहता हूँ बस तुम्हे ही -
मेरी सांसें -
मुखर होकर बस तुम्हारा नाम लेती....
मैं उफक के एक कोने पे,
खिंची सूरज की किरण से -
इन्द्रधनुष सा उभर कर,
व्योम में ये लिख रहा हूँ -
की - हमारे रंग की सरिता,
तुम्ही से रूप को आकार देती -
और तुम्हारी सांस की पंखुरियों पे,
भंवरों का गुंजन हो रहा है।
देखो तुम्हारी ही पलकों के तले,
ढल रही है रात .....
सुलग रहा है दिल ही दिल में
मेरा हर जज़्बात।
-नीहार
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सड़क अंतहीन....
पादप सब चुपचाप -
खोजता छांह पथिक -
बैठ गया थक हार।
है कोलाहल - मन के अन्दर,
चाँद को तरसे - हरा समंदर ....
उजाड़ बियाबान सा है दिन-
रत भी कटती तारे गिन गिन....
आँखें रोज़ रुलाती मोती,
नदिया बन तन मन को धोती।
बदन गल गया पारा पारा ,
न कोई जीता - न कोई हारा।
मन जाए बसे तेरे ही द्वार,
धड़कन बन गयी वीणा की तार -
तेरे नाम की एक जोत जलाकर ,
घूमे है बावरा इकतारा बजाकर।
छुन छुन बाजे तेरी पाँव की पायल,
नृत्य करे मन हो के घायल -
जब से हुआ है प्रेम प्रसंग...
तन जलता सूरज - मन उड़ता तुरंग...
हर तरफ बिखरा है रंग,
मन में जगी है नयी उमंग -
मिट जाता है हर विषाद,
मन में होता है हर्ष....
तेरा तुझको समर्पित करता मन सहर्ष ।
-नीहार
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वो ओस की नम सी बूंदों में,
कहीं फूलों की पंखुरियों में -
तुम्हारे साथ गुज़ारे पल -
मुझे जज़्ब कर खुशबु कर देते।
मेरी पलकों से लटकी हुयी बर्फ सी,
वो अश्रु की एक बूँद...
तुम्हारी सूखी हुयी सी आँखों में,
पिघल कर नदी हो जाती।
चलो मैं तुम्हे नींद के कुछ पल चुरा कर दूँ...
ख्वाब तो ख्वाब हैं,
चलो उनको धुनें बादलों सा मैं उड़ा दूँ।
-नीहार
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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
तुम हो तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...
तुमने कभी आँखों में नाचते हुए मोरे देखें हैं....नहीं न...देखना चाहोगी?आ जाओ...आ के मेरी आँखों के जंगल में झाँको....उफनते हुए दर्द के बादलों के झमाझम बरस जाते ही,मेरी आँखों में तुम्हारी यादों के मोर अपने पंख पसारे नाचने लगते हैं....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...भींगा मन है और आँखों से होती बरसात है।
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खिड़की से बहार चाँद ज़र्द सा है...मनो किसी ने सूरज को पीला चादर उढ़ा दिया हो...तारे जुगनू बन जल बुझ रहे.....दरख्तों पे बर्फ धुनी रुई सी टंगी है....पत्ते सारे के सारे सिहर कर अपने आप में दुबके जा रहे....झील में तैरता रक्त कमल चन्द्र किरणों से अभिसार कर रहा...मेरे भीतर एक सूनापन घर कर जाता है...मुझे उस रक्त कमल में अपनी प्रियतमा के तप्त अधरों का प्रतिबिम्ब नज़र आता है....मैं बगल में रक्खे तकिये को सीने से लगा लेता हूँ....तुम मुझमे उतर जाती हो....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....कमरे का एकांत है और यादों की बारात है....
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मैं जानता हूँ मेरे लिए मुश्किल होगा तुम्हारे संवाद के बिना जीना...तुम्हारी आवाज़ न सुनू तो लगे जैसे जिंदगी जिया ही नहीं....तुम्हारी आँखों में जो न झाँकू तो समंदर भी सहरा सा लगे है...तुम्हारे बिना न तो कोयल गाती....न ही फूल खिलते हैं....न सागर ठाठें मारता है....और न ही हवाएं बहती हैं.....तुम्हारे बिना मेरी सांसें चलती नहीं बस एक बुझे हुए दिए की लौ की तरह थरथराती है......तुम्हारे बिना मेरी आवाज़ खामोश सी रहती है...दिन जलता हुआ अलाव और रात सर्द बर्फ सी......सूरज पिघल कर टपक जाता और चाँद जम जाता है....तुम नहीं तो जिंदगी थम सी जाती है....पर तुम्हारा ख्याल है की मुझे जिंदा रखता है....तुम्हारी बातों की खुशबु मुझे महकाती है...मैं इस उम्मीद में की तुम वापिस आओगी जिंदा रहूँगा......
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...तुम्हारी यादों के जंगल में मेरी जिंदगी से मुलाकात है...
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आँखें बंद कर लेता हूँ और तुमको छू लेता हूँ....मेरे भीतर एक ओस की बूँद मेरी प्यास को बुझाती सी बिखर जाती है....मेरी आँखें धुन्धलाई सी हैं शायद...तुम्हारी याद पलकों पे ठहर से गए हैं आंसुओं की तरह...ज़ज्ब कर लूँगा इन्हें मैं अपने भीतर.....तुम छत पे चले आना और माहताब सा खिल जाना.....मैं चाँद को आईना दिखाना चाहता हूँ। तुम जब पास होते हो तो शब् के सन्नाटे झरनों सा कल कल निनाद करने लगते हैं...सितारे कृष्ण की गोपियों सी रास रचाते और चन्द्र किरण अमृत घाट से रसवंती हो बह जाती. मैं तृप्त हो जाता उस रसवंती को पी और तुम मेरे कानो में गाती और मैं सो जाता...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और खिली खिली सी धूप है...मेरी जागती आँखों में बस तुम्हारा ही रूप है...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...भींगा मन है और आँखों से होती बरसात है।
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खिड़की से बहार चाँद ज़र्द सा है...मनो किसी ने सूरज को पीला चादर उढ़ा दिया हो...तारे जुगनू बन जल बुझ रहे.....दरख्तों पे बर्फ धुनी रुई सी टंगी है....पत्ते सारे के सारे सिहर कर अपने आप में दुबके जा रहे....झील में तैरता रक्त कमल चन्द्र किरणों से अभिसार कर रहा...मेरे भीतर एक सूनापन घर कर जाता है...मुझे उस रक्त कमल में अपनी प्रियतमा के तप्त अधरों का प्रतिबिम्ब नज़र आता है....मैं बगल में रक्खे तकिये को सीने से लगा लेता हूँ....तुम मुझमे उतर जाती हो....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....कमरे का एकांत है और यादों की बारात है....
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मैं जानता हूँ मेरे लिए मुश्किल होगा तुम्हारे संवाद के बिना जीना...तुम्हारी आवाज़ न सुनू तो लगे जैसे जिंदगी जिया ही नहीं....तुम्हारी आँखों में जो न झाँकू तो समंदर भी सहरा सा लगे है...तुम्हारे बिना न तो कोयल गाती....न ही फूल खिलते हैं....न सागर ठाठें मारता है....और न ही हवाएं बहती हैं.....तुम्हारे बिना मेरी सांसें चलती नहीं बस एक बुझे हुए दिए की लौ की तरह थरथराती है......तुम्हारे बिना मेरी आवाज़ खामोश सी रहती है...दिन जलता हुआ अलाव और रात सर्द बर्फ सी......सूरज पिघल कर टपक जाता और चाँद जम जाता है....तुम नहीं तो जिंदगी थम सी जाती है....पर तुम्हारा ख्याल है की मुझे जिंदा रखता है....तुम्हारी बातों की खुशबु मुझे महकाती है...मैं इस उम्मीद में की तुम वापिस आओगी जिंदा रहूँगा......
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...तुम्हारी यादों के जंगल में मेरी जिंदगी से मुलाकात है...
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आँखें बंद कर लेता हूँ और तुमको छू लेता हूँ....मेरे भीतर एक ओस की बूँद मेरी प्यास को बुझाती सी बिखर जाती है....मेरी आँखें धुन्धलाई सी हैं शायद...तुम्हारी याद पलकों पे ठहर से गए हैं आंसुओं की तरह...ज़ज्ब कर लूँगा इन्हें मैं अपने भीतर.....तुम छत पे चले आना और माहताब सा खिल जाना.....मैं चाँद को आईना दिखाना चाहता हूँ। तुम जब पास होते हो तो शब् के सन्नाटे झरनों सा कल कल निनाद करने लगते हैं...सितारे कृष्ण की गोपियों सी रास रचाते और चन्द्र किरण अमृत घाट से रसवंती हो बह जाती. मैं तृप्त हो जाता उस रसवंती को पी और तुम मेरे कानो में गाती और मैं सो जाता...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और खिली खिली सी धूप है...मेरी जागती आँखों में बस तुम्हारा ही रूप है...
-नीहार
रविवार, 12 दिसंबर 2010
तुम्हारी याद में ....
टपका जो फर्श पर ,
वो मोती लुटाई आँखों ने....
गूंजी जो सदा वो,
धडकनों में तुम्हारी चाप है ....
लिया जो सांस तो,
खुशबु तुम्हारी जुल्फों की...
महका मेरा जीवन,
क्यूंकि तू मेरे पास है...
तुम ही बताओ मैं कहाँ जाऊं तुम्हे छोड़कर...
खुशियों पे मेरा भी,
कुछ हक है....
जी उठता हूँ मैं तुमसे खुद को जोड़कर...
-नीहार
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वो मुझसे मिल कर घर गया होगा,
और फिर बिस्तर पे गिर गया होगा।
दिल उसका कब से भरा भरा होगा,
उसने रो कर तकिया भिगोया होगा।
ये मुलाकात आखरी मुलाकात हो ,
यह सोच कर वो चुप हो गया होगा ।
वो जानता है की उसके बिन शायद,
ये शख्स बिलकुल ही मर गया होगा।
देखता रहता है रात दिन उसकी तस्वीर,
उसकी जुल्फों में बादल सा हो गया होगा।
उसके होठों पे रख के उँगलियाँ अपनी,
वो खामोशियों में उसको सुन रहा होगा।
उसकी आदत हो चुकी है उसे अब हर पल,
आवारा सा हर जगह उसे ढूंढ रहा होगा ।
हर एक आहट पे अपने दरवाज़े पे आके ,
शब के सन्नाटों में उसको तलाशता होगा।
वो आएगा ,ज़रूर आएगा फिर लौट कर ,
उसने मन ही मन दिल से ये कहा होगा ।
आँखें उफनती सागर सी हैं उसकी और,
उसमे घुल कर वो काजल सा बह गया होगा,
थरथराते लब से उसका नाम लेकर फिर वो ,
खुद ही उसकी प्रतिध्वनि वो सुन रहा होगा ।
वो जानता है की उसके बिन जी नहीं पायेगा,
जीने के वास्ते यादों के फूल वो चुन रहा होगा।
वो शख्श तेरा दीवाना है अपने ही किस्म का ,
अपनी दीवानगी का किस्सा वो बुन रहा होगा।
-नीहार
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गुलों का रंग निखर गया होगा,
वो खुशबु बन कर बिखर गया होगा।
मैं ढूंढ रहा था उसे ना जाने कब से ,
मुझे ढूंढता वो इधर उधर गया होगा।
फूल ही फूल खिले होंगे हर उस राह पे,
वो मुस्कुराता हुआ जिधर गया होगा।
वो बिगड़ा हुआ दिलफेंक आवारा सा ,
उसकी सोहबत में वो सुधर गया होगा।
आज की रात बर्फ ही बर्फ है जमी हुयी ,
आज वो पिघल कर निखर गया होगा।
वो नीहार है रात भर चाँद से ढलकता है,
सुबह फूलों पे टूट वो बिखर गया होगा।
-नीहार
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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
तुम हो तुम्हारा ख्याल है और .......
तुम हो,तुम्हारा ख्याल है और बर्फीली सी सुबह....
पहाड़ों से उतरती धूप ,
अलसाई हुयी सी है ।
रात की आँखों के आंसू अभी भी फूलों को नहलाये हुए हैं ,
पाखी अपने घोंसलों में दुबके हुए से हैं ।
हर तरफ सिर्फ एक ख़ामोशी है....
सर्द सी ....जर्द दी....बर्फ सी ....भींगी हुयी सी।
दुशाला ओढे हुए तुम्हारी यादों का मैं,
बंद आँखों से तेरी तस्वीर देख रहा ,
मौसम ए मोहब्बत की ताबीर देख रहा।
मंदिर में बजती घंटियों में तुम्हारी पाजेब की रुनझुन सुनाई देती है.....
ऐसा लगता है मुझे ,
की तुम मेरी साँसों के संतूर छेड़ रही।
मैं तुम्हें पूरी तरह महसूस रहा ....
तुम हो...मेरे वजूद में समायी हुयी सी,
मुझमे ही हो....तुम।
तुम हो,तुम्हारा ख्याल है और यमुना का तीर है....
कदम्ब की छांह,बंशी की धुन और मन हुआ फ़कीर है।
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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...
आकाश की सूनी सड़क,
तारों की रोशन कतारें...
टिमटिमाते जुगनुओं की बारिश,और...
सामने वाले घर के मुंडेर से झांकता,
पीला पीला ज़र्द सा चाँद...
मनो अभी पाक कर तापाक जाएगा।
ख्वाब हैं की आँख में पंख ले चुके......
होठों पे आंसुओं का नमक बिखर सा गया....
एक चिराग कहीं पे जल रहा बुझ रहा...
और मेरे कानो में हवाओं ने,
चुपके से है ये कहा कि,
तुम यहीं हो....यहीं हो तुम,
मेरे पास....मुझमे उतरती हुयी...
मुझमे पिघलती हुयी....
मुझमे तुम्हारी धड़कने रवानगी पाती।
एक नदी है जो मेरे भीतर तुम्हारी तरह मचल रही...
तुम्हारे स्पर्श ने मुझे पारा कर दिया,और...
मैं चुपचाप अपनी आँखों से ढलक कर तुम्हारे होठों पे जज़्ब हो गया।
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और आँखें हैं पुरनम...
तुम्हारा चेहरा है मेरे हाथों में जैसे फूलों पे शबनम।
- नीहार
पहाड़ों से उतरती धूप ,
अलसाई हुयी सी है ।
रात की आँखों के आंसू अभी भी फूलों को नहलाये हुए हैं ,
पाखी अपने घोंसलों में दुबके हुए से हैं ।
हर तरफ सिर्फ एक ख़ामोशी है....
सर्द सी ....जर्द दी....बर्फ सी ....भींगी हुयी सी।
दुशाला ओढे हुए तुम्हारी यादों का मैं,
बंद आँखों से तेरी तस्वीर देख रहा ,
मौसम ए मोहब्बत की ताबीर देख रहा।
मंदिर में बजती घंटियों में तुम्हारी पाजेब की रुनझुन सुनाई देती है.....
ऐसा लगता है मुझे ,
की तुम मेरी साँसों के संतूर छेड़ रही।
मैं तुम्हें पूरी तरह महसूस रहा ....
तुम हो...मेरे वजूद में समायी हुयी सी,
मुझमे ही हो....तुम।
तुम हो,तुम्हारा ख्याल है और यमुना का तीर है....
कदम्ब की छांह,बंशी की धुन और मन हुआ फ़कीर है।
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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...
आकाश की सूनी सड़क,
तारों की रोशन कतारें...
टिमटिमाते जुगनुओं की बारिश,और...
सामने वाले घर के मुंडेर से झांकता,
पीला पीला ज़र्द सा चाँद...
मनो अभी पाक कर तापाक जाएगा।
ख्वाब हैं की आँख में पंख ले चुके......
होठों पे आंसुओं का नमक बिखर सा गया....
एक चिराग कहीं पे जल रहा बुझ रहा...
और मेरे कानो में हवाओं ने,
चुपके से है ये कहा कि,
तुम यहीं हो....यहीं हो तुम,
मेरे पास....मुझमे उतरती हुयी...
मुझमे पिघलती हुयी....
मुझमे तुम्हारी धड़कने रवानगी पाती।
एक नदी है जो मेरे भीतर तुम्हारी तरह मचल रही...
तुम्हारे स्पर्श ने मुझे पारा कर दिया,और...
मैं चुपचाप अपनी आँखों से ढलक कर तुम्हारे होठों पे जज़्ब हो गया।
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और आँखें हैं पुरनम...
तुम्हारा चेहरा है मेरे हाथों में जैसे फूलों पे शबनम।
- नीहार
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