सूरज की हथेली पर -
चाँद का चेहरा लगा है.....
उनकी पलकों को चूम कर-
जो हम आ गए ,
अधर मेरा उनकी मादकता से पगा है....
फूल सब मुरझा गए -
ये सोच कर,
की धरती पर तो -
सितारों का मेला लगा है.....
मुझपे तुम्हारी जुल्फ ने -
की है घनेरी छांह......
धूप बिचारा ये देख कर ठगा का ठगा है।
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जब भी मुझे -
खुशबु में नहाने का मन करता है,
पलकें बंद कर तुम्हारे पास पहुँच जाता हूँ,
और फिर -
तुम्हारे जुल्फ के साए की खुशबु में नहाता हूँ।
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तेरी पलकों पे ख्वाब तिरने लगे हैं,
हम भी तेरी याद में अब घिरने लगे हैं.....
मन बादलों सा हो गया है मेरा जबसे,
बिना पंख के हम यूँ ही फिरने लगे हैं....
तितलियों की भाषा में हम गुनगुना कर,
भँवरे सा नशे में हम झूम कर उड़ने लगे हैं....
शांत नीरव मन के जंगल में हम सखी,
झरनो के कल कल निनाद सा छिड़ने लगे हैं।
आकाश में उड़ने की आदत नहीं है हमको,
उड़ने की कोशिश करते हुये हम गिरने लगे हैं।
6 टिप्पणियां:
जब भी मुझे -
खुशबु में नहाने का मन करता है,
पलकें बंद कर तुम्हारे पास पहुँच जाता हूँ,
और फिर -
तुम्हारे जुल्फ के साए की खुशबु में नहाता हूँ।
अब मुझे भी प्रयोग करना पड़ेगा इस पर ..फिर देखते हैं क्या परिवर्तन आता है ..बहुत सुंदर कोमल प्यार भरे अहसास ..आपका आभार
फूल सब मुरझा गए -
ये सोच कर,
की धरती पर तो -
सितारों का मेला लगा है.....
मन बादलों सा हो गया है मेरा जबसे,
बिना पंख के हम यूँ ही फिरने लगे हैं....
बहुत खूबसूरत अहसासों से भरी है तीनो रचनाये...सुन्दर कल्पनालोक...
बहुत कोमल अहसास.
बढ़िया रचनाएँ.
हम भी तेरी याद में अब घिरने लगे हैं.....
मन बादलों सा हो गया है मेरा जबसे,
बिना पंख के हम यूँ ही फिरने लगे हैं....
प्रेम पगे सुंदर भाव.... बहुत बढ़िया
Khubsurat..komal...makhamli...ahsason se bhar gaya...bahut pyari rachana...bahut achchha laga
मन बादलों सा हो गया है मेरा जबसे,
बिना पंख के हम यूँ ही फिरने लगे हैं....
bahut badiya.....
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