वक़्त बेवक्त –
एक आहट दिल को बहला कर गयी,
एक हवा –
शीतल मलय बन मेरे घाव को सहला गयी ।
एक उदासी –
लंबी होकर लिपट गयी मेरे जीस्त से,
एक खामोशी –
दर्द का नगमा हौले हौले सुना गयी।
एक मुसाफिर –
चलते चलते थक गया सालों साल से,
एक याद तेरी –
बन के चाँदनी उसकी रूह को नहला गयी।
खाली सा ये दिन –
लिए आया है थाल भर कोहसार,
फूल सारे –
खिलना भूल जैसे की शर्मायी हुयी।
मेरी आँखें –
हर वक़्त तुमको हैं ढूंढती,
तुम प्रिये –
हर शय में जैसे हो छायी हुयी।
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जलती आग ,
उठता धुआँ...
सूखे होंठ,
प्यासा कुआँ...
मन है बादल,
नैन छलछल...
दिल मुरझाया और,
गुमसुम कमल...
हाथ में राख़ –
समय भस्मित ,
काल के मकड़जाल में –
मैं हुआ विस्मित।
9 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया लेख
आभार
बहुत अच्छी रचना....
प्रेम रस भरी ......गहन भावों की
सुन्दर रचना...
dono hi bahut sundar .
वक़्त बेवक्त –
एक आहट दिल को बहला कर गयी,
एक हवा –
शीतल मलय बन मेरे घाव को सहला गयी ।
एक उदासी –
लंबी होकर लिपट गयी मेरे जीस्त से,
laazwaab .
vakai aapki rachnaye bhi bahut sunder lagi....
bahut aacha likha haa apne....keep it up!!.......
Aapka blog to behatreen h hi.. ye blog template bhi kaafi sundar h :)
bahut badhai...
Prem ko har ek shabd vyakt karti rachana...behad khubsurat
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