अधर चुमत लट उडत इधर उधर,
हवा में जैसे साँप डोलडोल जात हैं।
नैन कजरारे तोरे काजर से लबलब,
पलक उठा के मेरी भोर लिये आत हैं।
बोली तेरी मधुर शहद सी मीठी मीठी,
कोयल भी गायन में पाये जात मात हैं।
तू जो रक्खे पाँव ज़मीन पे ओ रूपसी,
फूल रंग रंग के इत उत खिल जात हैं।
- नीहार(चंडीगढ,१३ जुलाई २०१३)