मंगलवार, 9 सितंबर 2014

गज़ल

दर्द जब हद से गुजर जाता है,
आँख में बादल उतर आता है।

मुसाफिर है नहीं बसर उसका,
थक जाता है तो घर जाता है ।

उसकी आँखों में झाँक देखो,
लहराता समंदर नजर आता है।

धूप में तप के सोना हो गया,
इस तरह वो निखर जाता है ।

हरसिंगार सा है खिला लेकिन,
हल्के हवा में भी झड़ जाता है।

दिन में सूरज सा जीता लेकिन,
शाम होते ही वो मर जाता है ।
- नीहार