शनिवार, 20 नवंबर 2010

कुछ खुशबु जैसी बातें....(४)

यूँ तो मुख़्तसर सी बात है....की तू है,तेरा ख्याल है और चाँद रात है....
तेरी आँखों में जो लरजता है,वो कुछ नहीं बस प्यार है....मेरी आँखों में लरजता मेरे जीवन का ही सार है...धडकनें जो गीत गाती हैं रात दिन , उनमे महकती तेरी साँसों की खुशबु का विस्तार है...मैं तो फिरता था आकाश में सरफिरे बादल की तरह...तेरी जुल्फों में उलझ कर मिला मुझे मेरा संसार है...
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तुमने कभी आँखों में नाचते हुए मोर देखें हैं..नहीं न?देखना चाहोगी?...आ जाओ.....आके मेरी आँखों के जंगलों में झांको....उफनते हुए दर्द के बादलों के झमाझम बरस जाते ही ,मेरी आँखों में तुम्हारी यादों के मोर पंख पसारे नाचने लगते हैं...तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है.....मेरा भींगा सा मन है और आँखों से होती बरसात है।
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खिड़की से बहार चाँद ज़र्द सा है, मनो किसी ने सूरज का पीला चादर उसे उढ़ा दिया हो...तारे जुगनू बन कर जल बुझ रहे....दरख्तों पे बर्फ धुनी रुई सा टंग से गए....पत्ते सारे के सारे सिहर कर अपने आप में दुबकी जा रही...झील में तैरता रक्त कमल चन्द्र किरणों से खेल रहा....मेरे भीतर एक सूनापन घर कर जाता है.....मुझे उस रक्त कमल में अपनी प्रियतमा के तप्त अधरों का प्रतिबिम्ब नज़र आता है...मैं बगल में रक्खे तकिये को अपने सीने से लगा लेता हूँ....तुम मुझमे समा जाती हो .....तुम हो,तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....कमरे का एकांत है और यादों की बारात है....
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बुधवार, 17 नवंबर 2010

कुछ खुशबु जैसी बातें(३)


मेरे मन का जो हरे तिमिर,जो हरे ताप संताप हमारा,
जिसकी बातें खुशबु जैसी,जीवन में जिससे जश्न ए बहारा,
वो तुम हो, तुम हो , तुम हो, तुम!!!
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तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....
झील पे ठहरी चांदनी का विस्तार है और उसकी लहरों में घुली तारों की झिलमिल करती रौशनी,कल कल निनाद करती नदी की धर मन के पटल पर जलतरंगों सा बज रही....अपने कमरे की खिड़की से टिका मैं आकाश के चाँद को अपलक निहार रहा ......मुझे उसमे तुम दिख रही....सिर्फ तुम...ख्वाब नींद के दरवाज़े दस्तक दे रही....तुम्हारे आने की आहट आ रही....और मैं आँखों के ताल कटोरों में बंद कर तुम्हे अपने भीतर पाता हूँ । इस तरह मैं जी जाता हूँ।
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...नींद है ,ख्वाब है और तुम्हारा साथ है।
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एक अजनबी सा शहर और मेरी शाम उदास सी....कहीं चिरियोंके कलरव में खोया सा मेरे मन के अन्दर का शोर......आँखों में किसी के इंतज़ार की आहट जलते दिए सी थरथराती हुयी .....दूर मस्जिद से आती हुयी अज़ान की आवाज़ .....सड़क सुनसान और रातें लम्बी....पलकों पे टिकी नींद अपने सिंदूरी ख्वाब के गुलाल उड़ाती .....मुझे तुम्हारा इंतज़ार अच्छा लगता है....पलकें नींद से भारी हो रही....अश्रु की अजश्र धार मेरी आँखों से चुपचाप निकल कर मेरे तप्त होठों तक जाकर काफूर हो जा रही....ये अश्रु मेरे जिंदा होने का एहसास कराती हैं...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...नींद है,ख्वाब है और ख्वाब में तुमसे मुलाकात है....
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जानती हो जानम,तुम्हारी हर बात मुझे याद रहती है.....जब तुम नहीं होते मेरे पास तो हवाएं उन्हें मेरे कानो में गुनगुनाती है.....तुम्हारी साँसे हैं की देवदार के घने जंगलों से गुज़रती हुयी हवा....तुम्हारी मुस्कराहट जैसे चीड की फुनगियों पे टिकी चांदनी...तुम्हारी आँखें हैं या जादू जगाती समंदर का अथाह विस्तार ....तुम्हारे लब हैं या दहकते हुए पलाश...तुम्हारी आवाज़ से खिल जाते हैं शत दल कमल...तुम्हारी बाहें हैं या लचकती फूलों की डाली , जो मुझे अपने आगोश में ले खुशबु से तर ब तर कर देती हैं...तुम्हारी मुस्कुराहट बहारों का आमंत्रण है ....तुम जो सांस लेती हो तो मेरी धड़कन रवानी पाती है...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और सरसों सी धूप है ....सोती और जागती आँखों में बस तुम्हारा ही रूप है....
- नीहार

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

कुछ खुशबु जैसी बातें (२)

जानती हो जानम, मेरे कमरे के हर कोने में तुम्हारी खिलखिलाहट बसी हुयी है....गुलदान मुझसे यूँ बातें करते हैं ज्यूं उनमे सजे गुलाब तुम्हारे होंठ बन गए हों....मेरे लिए तुम नगमा हो...गीत हो....संगीत हो....चित्र हो....तस्वीर हो...स्केच हो.....और उन सबमे बिखरा हुआ रंग भी तुम्ही हो...तुम मेरे लिए कुरान की आयत हो...मेरी इबादत हो....मेरी हर खुबसूरत आदत और मुझ पर खुदा की बेइंतहा इनायत हो....तुम मेरे दिल का सुकून हो....मेरा चैन हो और आराम हो ....तुम मेरी जिंदगी का पूर्णविराम हो....तुम हो, तुम्हारा ख्याल है ओर चाँद रात है....

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तुम्हारी आँखें हैं या कमल की नशीली पंखुरियाँतुम्हारी जुल्फें हैं या मेरे चेहरे पर बिखरी धूप को ढंकती हुयी बदली......बाहें हैं या फूलों से लदे झूले...तुम्हारा बदन है जैसे मेरी अराधना का मंदिर और तुम्हारी खनकती आवाज़ है जैसे उस मंदिर में बजती हुयी सुरीली घंटियाँ...मैं तुम्हारा पुजारी, बस तुमही पूजा में तल्लीन...मेरी पूजा स्वीकार करो हे देवी!

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जानती हो जानम,यहाँ एअरपोर्ट पे बैठा हुआ मैं आँखें बंद कर तुम्हे ही देख रहा...धुले केश तकिये के पीछे बिखरे परे हैं और चाँद से चेहरे पे एक ग़ज़ब का मोहक सौंदर्य अपना रंग मुस्कराहट के गुलाल में घोल बिखरा रहा है...गुलाब की नाज़ुक पंखुरिओं से तुम्हारे अधर पर अभी भी मेरे नाम की ओस बूँद नमी पसारे हुए है...तुम्हारे काजल से कारे अंखियों में पिया मिलन की आस द्रवीभूत हो रही.....लगता है आज फिर बरसात होगी....तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...तुम हो तो हर दिन होली और हर रात शब् ए बरात है....

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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...हवा गुनगुना रही....तेरी याद के हरसिंगार मेरे मानस के पटल पर बिखर कर मुझे अपनी खुशबु से नहला रहे .....कहीं मयूरपंखी ख्वाब आँख के किनारे बस जाना चाह रहे.... कहीं कोई मंद मदिर सी हवा जैसे गुज़ारिश कर रही हो की तुम्हारी जुल्फों में उसे गुम होने दिया जाए।


जानती हो जानम, तुम्हारी खिलखिलाहट कौंधती धनक सी रात की तारीकी को रौशनी का ज़खीरा भेंट करती है....तुम जो दबे पाँव आती हो ख्यालों के चिराग टिमटिमा जाते हैं और जब मैं तुम्हारी बाहों के अमरबेल में जाकर जाता हूँ तो वो जकरन मुझे बंधन मुक्त करती है जिंदगी की हरेक परेशानी से.......तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....

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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....चारों तरफ सुबह का उजाला अपनी छटा बिखेर रहा, नन्ही सुकोमल सूर्य किरने किसी अबोध बच्चे की खिलखिलाहट की तरह पसर रही बिना किसी देश,जाति,धर्म,उम्र,समाज की परवाह किये बगैर....खिड़की के बाहर पक्षियों का शोर सुबह को आमंत्रण देता हुआ.....ऐसे में मेरा मन....ढूंढें तुम्हे जंगल,आकाश,वन....मैं पूछ रहा इस शहर की हर गली से.....की हे गलियां...हे चौबारा...हे मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारा....हे अट्टालिकाएं हे ईमामबारा ....कहीं तुमने देखी मेरी दिलदारा...मेरी जान ऐ अदा....मेरी जहाँआरा...उसके बदन की खुशबु अभी भी यहीं है......उसके सुकोमल क़दमों के निशाँ अब भी यहीं हैं....उसके मन के उदगार अब भी यहीं गुंजायमान हैं.....रुई के फाहों से नाज़ुक मुलायम उसके खयालात अभी भी बादलों सा तीर रहे हैं....तुम वह सब मुझे वापिस दे दो....वह सब मेरा है....सिर्फ मेरा....उसके एहसास मेरे, उसकी व्यथा मेरी,उसकी खिलखिलाहट और दर्द दोनों की कथा मेरी....उसके बदन को छू कर गुजरी हर हवा मेरी.....उसकी सांस मेरी,उसकी आस मेरी....उसके थरथराते होठों के पलाश मेरे,उसकी आँखों के समंदर की तलाश मेरी...उसके दिल में धड़कन मेरी ,उसकी जुल्फों में उलझन मेरी.....वो है तो मैं हूँ जिंदा....उसकी जिंदगी की हर चुभन मेरी...मुझे वो सब लौटा दो जो वो छोड़ गयी थी कुछ साल पहले मेरी ही तलाश में भटकती हुयी यहाँ.....तुम हो ,तुम्हारा ख्याल है और खिली कनेर के फूल सी धुप है....मेरी आँखों में बंद तुम्हारा बस तुम्हारा ही अप्रतिम रूप है....

- नीहार

बुधवार, 10 नवंबर 2010

कुछ खुशबु जैसी बातें....(१)


तब तक कुछ खुशबु जैसी बातें....कुछ उधरे हुए पल...कुछ अतीत का लिहाफ...और कुछ मन के सूने आँगन में उमर कर लरजते हुए बादल सी यादें...

मेरी हर सोच में तुम हो...हर रोच में तुम...मेरी हर कल्पना में तुम ही हो...मैं जो भी बुनता हूँ वह तुम्हारे ही यादों के धागों से बुना होता है...जो भी चित्र मैं उकेरता हूँ, उसमे रंग तुम्ही से भरता हूँ मैं...मेरी हर शाम पहाड़ से उतरती है बादलों की तरह जिनमे चांदनी के रंग से घुली होती हो तुम...मेरी हर सुबह तुम्हारी पलकों से चुरायी हुयी खुशबु को भर देती है फूलों में और वो खिल से जाते हैं...मेरा जंगल सा मन और देवदार सरीखे वृक्षों की श्रेणी....तुम्हारे साथ से जैसे बोलने लगे हों...गाने लगे हों...उनमे से गुज़रती हुयी हवा मुझे सदायें देती हैं....मुझे पास बुलाती हैं...एक सुरीली सी आवाज़ मुझे कहती है....जाएँ तो जाएँ कहाँ....
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तुमने मुझे बुलाया और मैं आ गया...सर से पाँव तक विस्तृत हो धरती को आकाश ने ढँक लिया... दिशायों की तरह फैले हुए हाथों ने आकाश का छोर थाम रक्खा है...एक चाँद से चेहरे से बादलों का लिहाफ उठा आकाश ने उस चाँद का अमृत पाण किया ....... यूँ आकाश पल पल को जिया।

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तुम्हारी याद है की नशे की तरह मुझ पर छाई रहती है...मैं जो भी पढता हूँ, वहां हर हर्फ़ किताबों के पन्नो से उठकर तुम्हारा अक्स बन जाता है और फिर मेरी आँखों के सामने नाचने लगता है। मैं जो भी लिखता हूँ उनमे तुम ख्वाब के हकीकत की तरह शामिल हो जाती हो...तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....

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जानती हो, मैं तुम्हे अजंता की भित्तियों मे ढूंढता हूँ...खुसरो की रुबाईयों मे ढूंढता हूँ...चांदनी की बिखरी किरणों मे ढूंढता हूँ...मंदिर मे महकते हुए लोबान की खुशबु मे ढूंढता हूँ....मैं तुम्हे जंगल, पहाड़, वन,फूल,वृक्ष,नदी,आकाश,धरती,समंदर,चाँद,सूरज,धनक,बादल और न जाने कहाँ कहाँ ढूंढता हूँ...मैं तुम्हे हर जगह,हर समय,हर तरफ, हर तरह से ढूंढता हूँ...और पाता हूँ तुम्हे अपने दिल की गहराईयों मे....तुम मेरे दिल मे हो।

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जानती हो राधिके, बस दो आँखें हैं कँवल जैसी, जिनमे लहराता हुआ सागर का विस्तार है...कपोलों की थरथराहट मे मदिरा का शुमार है....पाकीज़ा चाँद से चेहरे से बरसती चांदनी की धार....ये ही हैं मेरे सपने और यही मेरा संसार।

एक मुस्कुराती सी सुबह...एक खिलखिलाता सा दिन...एक मदहोश सी शाम और एक कसमसाती हुयी रात...ये सब मिल कर मेरे जीवन मे प्यार की बरसात करती हैं....तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...मैं हूँ, मेरी आँखें हैं और आंसुओं की बरसात है।

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