शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

है फिर मौसम बौराया सा ........

फिर है मौसम बौराया सा,
वो मुझको याद आया सा ।
कतरा कतरा पानी टपका,
है आँखें खून रुलाया सा ।
उसकी खुशबू बदन लपेटे,
है सुबह शाम मदमाया सा ।
धूप सरीखा बिखर रहा वो,
मैं ढ़ूँढ़ूँ उसमें फिर छाया सा।
चंचल चितवन वाली उसका,
है कंचन कंचन काया सा ।
दुनिया की नजरों से बचा उसे,
है दिल में रक्खा छुपाया सा ।
ख्वाब ख्वाब सा रहता है वो,
पलकों पे हरदम छाया सा ।
उसने मुझको पाया खुद में,
मैंने खुद में है उसे पाया सा ।

- नीहार ( चंडीगढ़, नवंबर २१,२०१३)

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

घोरि घोरि मिश्री पिबैत रहू ........

चूल्हा चौकी करैत रहू,
भरि दिन अहिना मरैत रहू ।
चेहरा चाँद सनक तँ की,
घोघ तानि कय घुटैत रहू ।
वर अहाँक राक्षस तँ कि,
देवता बूझि हुनक पूजैत रहू ।
बेटा जावत नहीं पैदा भेल,
प्रतिवर्ष बच्चा जनैत रहू ।
दोसर के सुख कय खातिर,
अपन सुख अहाँ त्यजैत रहू ।
लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा अहीं छी,
तैयो रावण सँ अहाँ डरैत रहू ।
पढ़लहँु लिखलहुँ तैयो सुनु यै,
दहेजक बलि पर रोज चढ़ैत रहु।
मैथिल वयना अछि सबसँ मीठ,
घोरि घोरि मिश्री अहाँ पिबैत रहू ।

- नीहार