शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

कवि झूठे होते हैं.......

कवि झूठे होते हैं -
लिखते कुछ पढ़ते कुछ,
मिट्टी कुछ गढ़ते कुछ ।
सोचते कुछ बोलते कुछ,
ढ़ँकते कुछ खोलते कुछ ।
कवि झूठे होते हैं -
कहते कुछ करते कुछ,
छोड़ते कुछ पकड़ते कुछ ।
जीतते कुछ हारते कुछ
मिमियाते कुछ दहाड़ते कुछ ।
कवि झूठे होते हैं -
हँसते कुछ रोते कुछ,
काटते कुछ बोते कुछ ।
जागते कुछ सोते कुछ,
दिखते कुछ होते कुछ ।
कवि झूठेे होते हैं -
रोकते कुछ भगाते कुछ,
छुपाते कुछ जताते कुछ ।
तोड़ते कुछ जोड़ते कुछ,
भरते कुछ कोरते कुछ ।
कवि झूठे होते हैं -
रूठते कुछ मनाते कुछ,
सताते कुछ गुदगुदाते कुछ।
आते कुछ जाते कुछ,
हँसाते कुछ रुलाते कुछ ।
कवि झूठे होते हैं -
इनका ऐतबार मत करना.....
कवि झूठे होते हैं -
उनसे आँखें चार मत करना ......
कवि झूठे होते हैं -
उनसे अपने जीवन का श्रृंगार मत करना .....
कवि झूठे होते हैं....
शत प्रतिशत झूठे होते हैं ।
 - नीहार ( कभी कभी मेरे दिल में ये बकवास सा खयाल आता है - बंगलुरू एयरपोर्ट पे इंतजार के क्षण ,दिनांक १० अक्टूबर , २०१३ )

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

गांधी मरा नहीं करते.....


मैं सिर्फ और सिर्फ एक ही गाँधी को जानता हूँ......
मैं सिर्फ और सिर्फ एक ही गाँधी को मानता हूँ......
बाकी जो भी है -
सब बकवास है .......
बालुका के ढ़ेर पे,
उगी कँटीली घास है -...
झूठ और हिंसा का,
किये वस्त्र विन्यास है.....
बेईमानी और अनाचार का,
फलता फूलता न्यास है ।
गाँधी -
कोई नाम या पदवी नहीं....
गाँधी -
कोई खादी या टोपी नहीं......
गाँधी -
कोई लाठी नहीं चरखा नहीं.....
गाँधी -
जंतर मंतर पर बैठा,
कोई उपवासी नहीं......
और न ही किसी आश्रम में -
अपनी दूकान चलाता संत है गाँधी ।
गाँधी -
एक विचार है,
जो कभी मरा नहीं .......
गाँधी -
मरा नहीं करते ।
- नीहार ( चंडीगढ़, २ अक्टूबर २०१३ )
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