गुरुवार, 29 मार्च 2012

नदी की खुशबु

उड़ते हुए पत्तों को दोनों हाथों से लपक लेता है ,
उसने मौसम की गवाही में ये खत लिखा होगा।
जैसे झड़ते हैं टूट कर शाख के पत्ते इस मौसम,
वैसे ही आँख को शाख कर वो झर गया होगा।
कहाँ से चुन लिए शब्द उसने अपने गीतों के ,
कहाँ से दर्द ला उन गीतों मे रच दिया होगा।
अपनी आवाज़ में भर ली होगी नदी की खुशबू ,
और फिर उसमें मौसम का रंग मिला दिया होगा।
शाम लाती है मेरी वो अपनी ज़ुल्फों की छाँव तले ,
अपनी आँखों को मेरे घर चराग उसने किया होगा।
लाख कोशिश करे पर मर नहीं पाता है ये ‘नीहार’,
तेरे लब से शायद अमृत कभी उसने पिया होगा।

गुरुवार, 15 मार्च 2012

नयन पलक ......

नयन पलक जब उठत हैं,
चहुँ बिखर जात हैं धूप
हर लेता मन का दुःख विषाद ,
प्रिया का अप्रतिम यह रूप
सब कुछ तो है पा लिया ,
पाय प्रिया का निश्छल प्यार
जीवन में नहीं अब कोई कमी,
जब से पायो प्रियतमा अनूप
मन से कभी मिट सका ,
तेरे दिव्य दरस की चाह
पल पल करता मन याद तुझे ,
पल पल उठती दिल में हूक
बिन तेरे सब कुछ सून है ,
ही रंग ही मधुर संगीत
तुझसे ही मुखरित वाणी मेरी,
बिन तेरे मैं तो रहता मूक
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कौन है जो याद करता है मुझे ,
कौन है जो संग मेरे गा रहा -
कौन है जो उमड़ घुमड़ कर बादलों सा ,
मेरे प्यासमन को है तरसा रहा .....
किसकी आँखें देखती हर पल मुझे ,
कौन मेरे दिल की धड़कन सुन रहा -
किसकी साँसों में महक उठता हूँ मैं ,
कौन मेरे लब से रंगत चुन रहा .....
किसकी जुल्फें रात का साया बनी ,
कौन है जो मदहोश मुझको कर रहा -
किसकी आँखों के समंदर में डूब कर,
ज़िन्दगी का मय ये शायर है पी रहा ....
क्या कहूँ तुमसे मैं तुम सब जानती हो ,
जो भी है वो उसको तुम पहचानती हो -
आईना भी देता है तेरे प्रश्न का उत्तर,
पर इस हकीकत को नहीं तुम मानती हो.....
चलो कह ही देता हूँ की तुम मेरा प्यार हो ,
मेरी कविता में प्रतिबिंबित उदगार हो -
दिल की धडकनों में गुम्फित तुम हो प्रिये,
तुम ही मेरे जीवन का अद्भुत श्रृंगार हो....