वो तुमको इतना चाहता है की -
खुदा बना देता है,
तुम उसको चाह के -
कम से कम इंसान तो बना डालो।
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यूँ पलकों पे ,
ख्वाब उतर जाने दो -
आवारा बादल सा ,
भटक रहा मैं -
मुझको अपने घर जाने दो।
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गर्मियों के मौसम में,
कुछ यूँ किया जाए -
आपकी आँखों के समंदर में,
कुछ पल तैर लिया जाए।
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आजकल वो -
नकाब के बिना ही निकलता है...
सुना है -
आफताब ने अपना काम,
उसे आउटसोर्से कर दिया।
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यमराज ने -
जब से खोल रक्खा है,
इंडिया में अपना कॉल सेंटर -
रोंग नंबर की तादाद,
बढती ही जा रही।
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म्यूजिक कम्पोजर्स ने -
जब से धुन सुना के ,
गीत लिखवाये....
कोयलें भूल गयीं -
गा गा के कूकना।
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7 टिप्पणियां:
वो तुमको इतना चाहता है की -
खुदा बना देता है,
तुम उसको चाह के -
कम से कम इंसान तो बना डालो।
बेहतरीन ...सभी क्षणिकाएं ज़बरदस्त
यमराज ने -
जब से खोल रक्खा है,
इंडिया में अपना कॉल सेंटर -
रोंग नंबर की तादाद,
बढती ही जा रही।
सामयिक सन्दर्भों को बहुत सुंदर और सार्थक शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है ...यम राज का कॉल सेंटर खोलना और रोंग नम्बर की तादाद बढ़ना ...बहुत सुंदर हैसभी क्षणिकाएं गहरे अर्थों को समेटे हुए
वो तुमको इतना चाहता है की -
खुदा बना देता है,
तुम उसको चाह के -
कम से कम इंसान तो बना डालो।
वाह..बहुत सुंदर..सभी क्षणिकाएं एक से बढकर एक...
आजकल वो -
नकाब के बिना ही निकलता है...
सुना है
आफताब ने अपना काम
उसे आउटसोर्से कर दिया-
बहुत खूब.नज़्म में नए शब्द घुल रहे हैं.
सलाम.
सुन्दर क्षणिकाएं ...
हर क्षणिका स्वयं को सार्थक अभिव्यक्ति दे रही है |
Sari kshanikayen ek se badhkar ek hai....swayn ko purn arthon se abhivyakt karti hui....behad khubsurat...shubhkamna
sunder aur saral shabd , achhi kavitayein
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