रविवार, 14 मार्च 2010

मेरे महबूब तुम मेरे बिन नहीं रह पाओगे

(एक इरादा किया अपने पुराने दिनों को पुनर्भ्रमण करने का.बहुत सारी कवितायेँ हैं जो उन् दिनों की हैं जहाँ व्यक्तित्व में ठहराव नहीं था। अपनी संवेदनशीलता को लिख कर मैं खुद को उबारता था अपने एकाकीपन से। ये कविता १९८५ से १९९० के बीच लिखी गयी हैं। डायरी के पन्नो की कैद से इन्हें मुक्त कर आपकी सेवा में पेश कर रहा हूँ।)
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तुम ना आओ तो ना आने का बहाना ना करो ,
चाँद आंसू भी मुझ पर क्यूँ तुम बर्बाद करो।
मैं तो एक बाशिंदा हूँ मुर्दों की उस बस्ती का,
प्यार जिसके लिए नाम नहीं है मस्ती का।
प्यार हमने जो किया है तो निभाएंगे सनम,
चाहे लेने पड़े हमें और अभी कितने ही जनम।
हमने अपने कलेजे में एक घाव छुपा रक्खा है,
उसने भी प्यार का वह मीठा ज़हर चक्खा है।
तुम तो पैसों से अपना प्यार खरीद लोगे,
पर मेरे जैसा शख्स फिर तुम कहाँ पाओगे।
मैं तो यूँ ही बेमोल सा झोली में आ गिरता हूँ,
जिसने भी प्यार से छुआ उन्ही पे मैं मिटता हूँ।
मैं तो धड़कन सा हूँ, जो दिल में गुंथा होता है,
मैं तो सरगम सा हूँ जो संगीत में छुपा होता है।
मैं वो रौशनी हूँ जो आँखों को सूरज कर देता हूँ,
मैं वो हवा हूँ जो हर सांस में गति भर देता हूँ।
मुझसे जो रूठोगे तो बताओ तुम कहाँ जाओगे,
मेरे महबूब तुम मुझ बिन कभी नहीं रह पाओगे।
-नीहार
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घुटनों का पानी गर्दन के ऊपर तक चढ़ गया,
वह दर्द जो घटने को था,फिर से है बढ़ गया।
मैंने समय से जूझने की कितनी की कोशिश,
तकदीर मेरे ही सर हार का सेहरा ही मढ़ गया।
पढने को पढ़ रहा था मैं मोहब्बत की पढ़ाई,
गढ़ने को मैं नफरतों की कहानी ही गढ़ गया।
कुछ देर को जो धूप में मेरी आँखें खुली रही,
मेरे चारों तरफ का अँधेरा कुछ और बढ़ गया।
-नीहार
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मेरी तमन्ना है की तुम बस खुश रहो,
खुशियों की आँधियों में उम्र भर बहो।
सुनने की तो आदत नहीं रह गयी तुम्हे,
कहने की ही आदत है, जो चाहो वो कहो।
मेरे जिगर का खून बहुत ही सुर्ख है अभी,
दामन में अपने इससे तुम कोई फूल तो गहो,
जो जिंदगी मेरी मन्हुसिअत की है एक छाँव,
दूर हो कर मुझसे ख़ुशी की धूप में तुम रहो।
-नीहार
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एक दिन,
जब सब ख़त्म हो जायेंगे -
उस दिन,
कहीं ना कहीं - कोई ना कोई -
अहसास होगा जिंदा -
की आदमी जो था,
वह प्रकृति का अद्भित करोश्मा था -
जो करिश्मों में जिया - और,
करिश्मों में ही मरा -
जैसा किया - वैसा ही भरा।
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4 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत अच्छी रचनायें. और भी पढ़ने को मिलेंगी इस आशा के साथ.

Udan Tashtari ने कहा…

वाह जी, आनन्द आ गया!

रानीविशाल ने कहा…

Bahut Sunsar prastuti ...pad kar bahut accha laga.

Dilip Kumar Soni ने कहा…

bhut bdiya...