रविवार, 21 मार्च 2010

है अनूठी साधना यह अनवरत वर्षों चलेगी...

है अनूठी साधना यह अनवरत वर्षों चलेगी,
कर्मजीवी की तपस्या से धरा प्रतिफल पलेगी।
साध्य साधक साधना मिलकर सब लक्ष्य साधें,
मौन के मुखरित स्वरों से वासना का बाँध बांधे।
ये ज़मीं और आसमां जाकर जहाँ पर एक होंगे,
शायद वहीँ पर सभी को जीने के अवसर मिलेंगे।
बढ़ चलो खोजें जरा हम उस जहाँ का कोई दर ,
जो लगे हम सभी को खोया हुआ अपना ही घर।
घर के अन्दर आदमी की कोख में सभ्यता पलेगी,
सभ्यता के अवशेष पर ही सभ्यता उठ कर चलेगी।
-नीहार
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आदमी को आदमी का दर्द पीना चाहिए,
औरों की खातिर उसे कुछ तो जीना चाहिए।
आग 'गर दिल में जले तो बात ही कुछ और है,
आग रखने को मगर फौलाद का दिल चाहिए।
भाई भी भाई का नहीं है आज के इस दौर में,
लड़ने की खातिर उन्हें बस टूटा टीना चाहिए।
कल बहाया होगा खून दूसरों की खातिर भले,
आज हमको अपनी ही खातिर पसीना चाहिए।
बिखरा हुआ है आदमी आज आदमी की भीड़ में,
खोज कर उनको सजाने का तो करीना चाहिए ।
आओ आके सब बांध लो मुट्ठी ऐ अच्छे आदमी,
इस देश को तुम जैसा ही कोई नगीना चाहिए ।
-नीहार
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पहाड़ अब टूट कर गिरने लगे हैं,
आँधियों में आदमी तिरने लगे हैं।
नदियाँ ढ़ोने लगी आदमी का खून,
हम लाश के अम्बार से घिरने लगे हैं।
सत्य और अहिंसा के पुजारी आज,
अंध कूपों में पड़े सब सड़ने लगे हैं।
आदमी सब आदमियत भूल कर के,
पशु वृत्ति की आग में जलने लगे हैं।
मौत की सी ठंडक लिए इस रात में,
जिंदगी के वास्ते हम मरने लगे हैं।
-नीहार
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2 टिप्‍पणियां:

Taarkeshwar Giri ने कहा…

kamal ki sadhna hai.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया!

हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.