शनिवार, 27 मार्च 2010

तुम्हारे साथ के पल


तुम्हारे साथ के दो पल, मेरे कल आज और कल।
तुम्हारी जुल्फों के साए में,मेरा दिन जाता है ढल।
मुझे मदहोश कर देती हैं ,तेरी ये दो आँखें चंचल।
वैसे हूँ पत्थर का बना ,पर तेरे साथ जाता पिघल।
जो तुम होते नहीं हो पास, तो मैं हो जाता हूँ विह्वल।
मैं सूरज की तपती किरण,तुम हो चंदा सी शीतल।
मैं पिघलता हिमखंड और तुम उससे गंगा हो निर्मल।
मैं तुम्हारा श्वास हूँ और तुम हो मेरे दिल की हलचल।
मैं ये जानता हूँ की तुम मेरी तपस्या का हो प्रतिफल।
-नीहार
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फूलों को चुनने की तो आदत नहीं थी हमें,
काँटों को आपकी राह से चुनते चले गए।
जो पल हमने गुज़ारे हैं आपके साथ साथ,
उन पलों के धागों से सपने बुनते चले गए।
जब बातें कर रहे थे पिछले दिनों की हम ,
उन बातों की खुशबु में मचलते चले गए।
जो खिलखिलाहटें थी झरनों की सी निर्मल,
आँखें बंद कर के उनको हम सुनते चले गए।
कुछ पल मेरे काँधे पे सर रख सोयी रही आप,
कुछ पल आपके साए में हम ढलते चले गए।
आपके बिना जीवन जैसे लड़खड़ा के है चलता,
आप हैं साथ तो हम गिर के संभलते चले गए।
हम आप के दिल में बसे हैं धडकनों की तरह,
आप मेरी आँख में ख्वाब सा पलते चले गए।
हम तो मौज हैं सागर की सर पटकते रहते हैं,
आप चाँद हैं जिसे देख हम मचलते चले गए।
हम न बदले हैं न बदलेंगे औरों की खातिर ,
आपकी खातिर पर हम तो बदलते चले गए।
-नीहार

4 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

bahut samvedansheel....!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Rajeysha ने कहा…

वैसे एक आदमी यदि‍ हमेशा ही कुछ ना कुछ करता ही रहे, बि‍ना सोचे या एक बार सोचे और फि‍र लगातार करता ही रहे.... ऐसे तो रोबोट भी बनाये जा सकते हैं,नहीं ????

Vijuy Ronjan ने कहा…

aapki baat sach hai rajey bhai...par ye bhi sach hai ki aap roz office jaate ho, aap roz wahi kaam karte ho, aap roj nitya kriya se nivritt hote ho, aap roz ek hi rishte ko jeete ho...to isme fir naya kya hai...bhavnayen ek hi hai aur smapreshan ka tareekaalag alag...likhna aadat hai aur main is site ko apne diary ke panne ki tarah pryaog karta hun.Aap padhte hain to dhanyavaad..par islie nahi likhta ki kisi ka accha lage ya kisi ko bura.apni batein khud likhta hun...khud padhta hun kyunki khud ke liye hi ye kavitayen gadhta hun..ek aur baat jab bhi unromantic , vidrohi tevar ki kavita likhi , ya upload kiya kisi ne na to use padh na hi comment kiya...yani ham sab ek hi ras ko sarahte hai,...to ham robot hi hain na...