गुरुवार, 18 मार्च 2010

तेरी याद बहुत तड़पाती है ....

तेरी याद बहुत तड़पाती है,सीने में आग लगाती है।
जब कोहरे छत पे टंगने लगे,तब धूप कहाँ रह जाती है,
वह घूंघट में छिप जाती है, सजनी की याद दिलाती है।
तेरी याद बहुत तड़पाती है।
वर्षा जब बरसे वर्षों तक, तब ये तन्हाई क्या गाती है,
गा - गा के मुझे सताती है, सपनो से फिर दुलराती है।
तेरी याद बहुत तड़पाती है।
झूला जब झूले सावन में, तो वह सबके मन हर्षाती है,
पर वह मुझको बहुत रुलाती है,जब याद तुमहरी लाती है।
तेरी याद बहुत तड़पाती है।
कोयल की मीठी तान सखी, मेरे सीने में आग लगाती है,
पर वह आग कहाँ बुझ पाती है,मन को तो राख बनती है।
तेरी याद बहुत तड़पाती है।
क्यूँ याद तुम्हारी आती है?
क्यूँ आके मुझे सताती है?
कभी मुझको यह तड़पाती है,
कभी बारिश बन नहलाती है ,
कभी आँखों में चुभ जाती है ,
कभी साँसों को महकाती है,
कभी आँखों की नींद चुराती है,
कभी सपनो से फिर बहलाती है।
तेरी याद बहुत तड़पाती है...।
-नीहार
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2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bhai waaaaaah

waaaaaaaah

waaaaah

umda rachna

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत खूब!