बुधवार, 3 मार्च 2010

कुछ अपनी बात कहूँ मैं तुमसे ......

कुछ अपनी बात कहूँ मैं तुमसे, कुछ तेरी बात सुनु,
तेरे होठों पे खिलते गुलाब की कलियों को मैं चुनु।
रात सोता सोच के तुमको सुबह उठूँ तेरा नाम लिए,
फिर दिन भर तेरी तस्वीरों से मैं बातें ढेर करूँ।
तेरी ही यादें दे जाती हैं मेरी सूनी आँखों में आंसू ,
अपनी पलकों पे उनको मैं सजा के यूँ ही रक्खूं।
मैं आवारा बादल हूँ जो बरसा नहीं कहीं भी अब तक,
तुम लहरा दो जुल्फें अपनी ,जिनकी कैद में मैं बरसूँ।
बस मुझको तो तेरी ही धुन रहती है हरदम जानम,
तुम बाग़ का पुष्प अनोखा ,मैं भंवरा बन तुझमे सिमटुं।
मैं चन्दन का पेड़ हूँ सजनी, तुम उसपे हो सर्प सी लिपटी,
तुम महको बस चन्दन बन कर और मैं तेरी गंध लिए महकूँ।
-नीहार

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

कुछ अपनी बात कहूँ मैं तुमसे, कुछ तेरी बात सुनु,
तेरे होठों पे खिलते गुलाब की कलियों को मैं चुनु।
रात सोता सोच के तुमको सुबह उठूँ तेरा नाम लिए,
फिर दिन भर तेरी तस्वीरों से मैं बातें ढेर करूँ।
तेरी ही यादें दे जाती हैं मेरी सूनी आँखों में आंसू ,



इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....