बुधवार, 9 जुलाई 2008

जहाँ मेरे स्वप्न पला करते हैं

मुमकिन है तुम्हें याद आए वो पल
जब मैंने गूंथा था तुम्हारी जुल्फों में बादल,
जब तुम्हारे चेहरे को छू सूरज रोशन हुआ था,
जब तुम्हारी आंखों में लहराया था सागर,
जब तुम्हे सीने से लगा मैंने जिंदगी की साँसे ली,
जब तुम्हारे होंठ से चुरा ली थी अमृत की एक धार,
जब मैंने तुम्हारे सीप सी आंखों में झाँक कर था कहा,
तुम्ही हो.... हाँ तुम्ही तो हो मेरी जिंदगी का प्यार।
तुमसे ही ही सागर,तुमसे ही हवा और आकाश,
तुमसे ही रूप, तुमसे ही रंग, तुमसे ही है हेर तरफ़ बहार...
मेरी आफरीन .....तू है सबसे हसीं...
तू है सबसे अलग ,तू सबसे जुदा ...
तू ही मेरी इबादत ...तू है मेरा खुदा...

4 टिप्‍पणियां:

jasvir saurana ने कहा…

bhut sundar. ati uttam. likhate rhe.

मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा…

प्रेम की चाशनी में लिपटी है ये आपकी कविता, बहुत बढ़िया!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

pyaar bhi hai judaa
bahut achhi kavita

36solutions ने कहा…

बढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । इस नये हिन्दीण ब्ला ग का स्वागत है ।
शुरूआती दिनों में वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें इससे टिप्पयणियों की संख्या‍ प्रभावित होती है
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