सोमवार, 21 जुलाई 2008


उलझी लटों को आओ मैं संवार दूँ ,

आओ मैं जी भर के तुम्हे प्यार दूँ ।

तुम चाँद बन मेरा घर रोशन करो ,

मैं आसमान बन के तेरा सत्कार करूँ ।

यूँ तो तुझसा है नही कोई सुंदर यहाँ पर ,

फ़िर भी आ तेरा मैं नित नया श्रृंगार करूँ ।

तेरे होठों पे सजा दूँ खुशबु -ऐ -गुलाब की ,

तेरी आँखों में नशा -ऐ -मोहब्बत उतार दूँ ।

तेरी धरकनो को दूँ मैं प्यार का सरगम ,

तेरी साँसों को मैं चंदन की खुमार दूँ ।

प्यार दूँ ,जी भर के तुझे मैं प्यार दूँ

तुझको तुझी से चुरा के मैं ,

आ अपनी दुनिया संवार लूँ ।




2 टिप्‍पणियां:

pallavi trivedi ने कहा…

तुम चाँद बन मेरा घर रोशन करो ,
मैं आसमान बन के तेरा सत्कार करूँ ।

bahut sundar rachna...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा रचना है, बधाई.