रविवार, 20 जुलाई 2008

कभी चांदनी में गूँथ लो मुझको


कभी चांदनी में गूँथ लो मुझको,

कभी तुम मुझको चंदन कर दो,

कभी रंग दो मुझे अपने ही रंग में,

कभी मेरेगीतों को अपना स्वर दो

कभी उतर आओ सावन की घटा बन कर ,

कभी मानस में समंदर सा लहर जाओ

कभी कोयल की तरह मधुर गीत गा कर,

मुझे अपनी बांहों में ले कर तुम सुलाओ ।

कभी आओ की आने की वजह के बिना,

कभी ना जाओ जैसे की रास्ता हो बंद,

कभी साँसों में घुल जाओ खुशबु की तरह,

जैसे घुली हो फूलों में मेहेकी सी मकरंद ।

कभी मेरी नींद आंखों से चुरा कर तुम,

सजा लो आंख में उसको काजल की तरह,

कभी अपनी जुल्फों को मेरे चेहरे पे बिखेरे,

छा जाओ मुझपे तुम घने बादल की तरह ।

मैं जानता हूँ तुम मुझे चाहती हो बहुत,

मिलने की ख्वाहिश तुम्हारे दिल में भी होती होगी,

तुम्हारी आँख में उस वक्त समंदर उतर आता होगा,

जब मेरी याद तुम्हे पल पल को सताती होगी...

मेरी आफरीन मैं आऊंगा लौट के पास तुम्हारे,

तुम्हारी जुल्फों में मैं गुलाब फिर सजाऊंगा,

तुम्हारे लिए जो नगमे मैंने हैं लिखे,

एक एक नगमे मैं तुम्हे बैठ के रोज़ सुनाऊंगा।

मैं लौट के तुम्हारे पास आऊंगा.....मैं लौट के तुम्हारे पास आऊंगा...





2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनों भावो को बहुत सुन्दर ढंग से पेश किया है।बधाई।

कभी चांदनी में गूँथ लो मुझको,
कभी तुम मुझको चंदन कर दो,
कभी रंग दो मुझे अपने ही रंग में,
कभी मेरेगीतों को अपना स्वर दो

Udan Tashtari ने कहा…

कभी चांदनी में गूँथ लो मुझको,
कभी तुम मुझको चंदन कर दो,
कभी रंग दो मुझे अपने ही रंग में,
कभी मेरेगीतों को अपना स्वर दो

-क्या बात है, बहुत खूब!!