सोमवार, 4 जनवरी 2010

तुम्हारी लटें, मेरा ख्याल और चाँद रात

उलझी लटों को आओ मैं संवार दूँ,आओ मैं जी भर के तुम्हे प्यार दूँ
तुम चाँद बन मेरा घर रोशन करो, मैं आसमान बन के तेरा सत्कार करूँ।
यूँ तो तुझसा है नहीं कोई सुन्दर यहाँ पर,फिर भी आ तेरा मैं नित नया श्रृंगार करूँ।
तेरे होठों पे सजा दूँ खुशबु-इ-गुलाब की,तेरी आँखों में नशा-इ-मोहब्बत उतार दूँ।
तेरी धरकनो को दूँ मैं प्यार का सरगम,तेरी साँसों को मैं चन्दन की खुमार दूँ।
प्यार दूँ,जी भर के तुझे मैं प्यार दूँ, तुझको तुझी से चुरा के मैं ,अपनी दुनिया संवार लूँ।
तुम मेरी धरकनो में गुम हो जाओ, मैं तुम्हारी कल्पना को एक नया आकार दूँ।
झरनों सा तुम मेरी जिंदगी में खिलखिलाओ, और मैं तुम्हे आकाश का फिर विस्तार दूँ।
खरगोश की नाज़ुकी लिए,फूलों की खुसबू लिए, बस तुम्हारे ही लिए मैं मौसम - ऐ - बहार दूँ।
तुमने खुद को जब कर दिया है अर्पण मुझे , मैं भला कैसे न फिर तुमको तुम्हारा निहार दूँ।

2 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

रचना बहुत प्यारी है .
शायद कहीं वर्तनी या मात्राओं की कमी रह गयी है

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर प्यारी रचना!!


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-सादर,
समीर लाल ’समीर’