यूं मुझको याद आती है तुम्हारी ,
ज्यूं सर्दियों की धुप में जैसे खुमारी,
जैसे किसी मासूम की कोमल हँसी,
जैसे किसी नवजात की बस किलकारी ।
जैसे किसी झरने ने गाया एक तराना,
जैसे कोई बारिश बरस जाये सुहाना,
जैसे भवरें गुंजायमान हों बाग़ में,
जैसे रंग बिरंगे फूलों से पट जाए फुलवारी।
जैसे धरती पर उतर आये कोई काली घटा,
जैसे बिखर जाए चन्दन की मादक गंध ज्यूँ,
जैसे मचल जाए सागर बिना पूरे चाँद के,
जैसे धरती पर की गयी हो चित्रकारी।
यूँ मुझको रोज़ आती है याद तुम्हारी.....
छा जाती है ज्यूँ मुझ पर कोई खुमारी ।
- निहार
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