जब अकेलापन बहुत सताता है,मुझको खुद की तस्वीर वो दिखता है।
आईना जब भी मुझसे बात करे,मेरे अन्दर कुछ दरक सा जाता है।
कुछ हवा में अनमनी सी चाह जगे, कभी मैं सिरहाने तेरी चाप सुनु,
कभी बेसाख्ता अपने होठों पे, तेरे नाम की हरवक्त मैं सरगम धुनु,
कभी आकाश में पाखि सा उड़ जाए मन, कभी घुमु तेरी जुल्फों के वन ,
कभी बस चुपचाप तेरे कानो में, छोर जाऊं मैं बस अपना ही क्रंदन।
जिस तरह सावन में झमझम बरसे बादल, जिस तरह पत्ते भींगे पेड़ के,
बस उस तरह मन मेरा बन बावरा, भीग भीग जाए बस तुम्हारे प्यार में।
चलो अब नींद से जगा दो मुझको,एक बार तो सीने से लग जाओ तुम,
एक बार मुझे भर लो अपनी साँसों में, एक बार धरकनो में हो जाओ गूम।
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