रविवार, 3 जनवरी 2010

मुझको एक रात उधार दे दो,अपनी साँसों का उपहार दे दो।
मैं ढून्ढ रहा तुमको इस बेजुबान शेहेर में दिन रात,
तुम कहीं से दौर के आओ और मुझे अपना दीदार दे दो।
यूँ तो हेर मौसम में आज कल खिल जाते हैं फूल ,
तुम आके उन् फूलों को रंगत-ऐ -बहार दे दो।
कभी बादल, कभी चाँद, कभी टिमटिमाते तारों सा,
मेरे जीवन को आ के तुम एक नया श्रृंगार दे दो।
मेरे ह्रदय की धरकनो में रच जाओ किसी गीत की तरह,
मेरे मानस को छू के तुम एक पवित्र विचार दे दो।
जो साथ है मेरे वो तुम्हारा अक्स है मेरी जानम,
जो है तुम्हारे पास उस का नाम निहार दे दो।
इस जनम या उस जनम या हर जनम के वास्ते,
अपने आप का मुझे तुम एक अप्रतिम उपहार दे दो।

2 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना दिल को छू गई....

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत है।बधाई।