यह चित्र मैंने वर्ष १९९८ में अपने जमशेदपुर प्रवास के दौरान बनाया था .इस चित्र के माध्यम से मैंने माँ काली के उस रूप को चित्रित करने की कोशिश की है जहाँ माता का क्रोध शिवजी की छाती पर पैर रखते ही शांत हो जाता है और शर्म से उनकी जिह्वा बाहर आ जाती है।
_ निहार खान
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