शनिवार, 4 जनवरी 2014

शुभकामना

तम हरे जो दीप उसका भविष्य है जलना,
बर्फ की नियति है उसका पानी हो गलना ।
बहती हुयी सलिला पतित पावनी कहलाती है,
हर नदी के भाग्य में है बस अनवरत चलना ।
सूरज की फितरत है कि वह दे रौशनी सबको,
खुद ही तप कर हर किसी के तमस को हरना ।
प्रगतिवादी व्यक्ति कभी पीछे मुड़ नहीं देखता ,
उसकी नियति में है लिखा सिर्फ आगे ही बढ़ना।
जो साल बीत गया उससे ये सबक तुम सीख लो,
'गर चलना हो तो बस तुम सन्मार्ग पे  ही चलना।
अगर हो आस्था भारत के संविधान में तुमको , 
तो सांसद के रूप में हर एक लायक को चुनना ।
आनेवाला साल हर्ष और उल्लास से हो भरा ,
काँटे में भी रह कर सदा तुम फूल सा खिलना ।
शुभकामना शुभकामना शुभकामना शुभकामना ,
शुभकामना शुभकामना शुभकामना ।।
- नीहार (चंडीगढ़, ३०/१२/२०१३ )

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