फिर है मौसम बौराया सा,
वो मुझको याद आया सा ।
कतरा कतरा पानी टपका,
है आँखें खून रुलाया सा ।
उसकी खुशबू बदन लपेटे,
है सुबह शाम मदमाया सा ।
धूप सरीखा बिखर रहा वो,
मैं ढ़ूँढ़ूँ उसमें फिर छाया सा।
चंचल चितवन वाली उसका,
है कंचन कंचन काया सा ।
दुनिया की नजरों से बचा उसे,
है दिल में रक्खा छुपाया सा ।
ख्वाब ख्वाब सा रहता है वो,
पलकों पे हरदम छाया सा ।
उसने मुझको पाया खुद में,
मैंने खुद में है उसे पाया सा ।
- नीहार ( चंडीगढ़, नवंबर २१,२०१३)
वो मुझको याद आया सा ।
कतरा कतरा पानी टपका,
है आँखें खून रुलाया सा ।
उसकी खुशबू बदन लपेटे,
है सुबह शाम मदमाया सा ।
धूप सरीखा बिखर रहा वो,
मैं ढ़ूँढ़ूँ उसमें फिर छाया सा।
चंचल चितवन वाली उसका,
है कंचन कंचन काया सा ।
दुनिया की नजरों से बचा उसे,
है दिल में रक्खा छुपाया सा ।
ख्वाब ख्वाब सा रहता है वो,
पलकों पे हरदम छाया सा ।
उसने मुझको पाया खुद में,
मैंने खुद में है उसे पाया सा ।
- नीहार ( चंडीगढ़, नवंबर २१,२०१३)
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