शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

चलो चलें गाँव की ओर......

कूकत कोयल नाचत मोर,
चाँद बुझा के आ गई भोर ।
टिन के छत पे बारिश बूँदें,
दय दय ताल करत हैं शोर ।
जंगल जंगल खबर है फैली,
नर नारी  हुये आदमखोर ।
आदम के नीयत का नहीं,
मिलता कहीं ओर या छोर ।
हर एक को नीचा दिखाने ,
यहाँ लगी है सब में होड़ ।
प्रगति का लेखा मत देखो,
ये देश चला रसातल ओर ।
हर नेता भाषण में कहता,
तारे लाएगा आसमाँ तोड़ ।
हर अमीर जी रहा पी कर,
यहाँ गरीब का खून निचोड़ ।
संसद का मत हाल तू पूछ,
लड़ते सब वहाँ कुर्सी तोड़ ।
कौन कितना बड़ा असंत है,
संतों में लगी इसकी है होड़ ।
टिकट उसे देगी हर पार्टी ,
जो चोरों का होगा सिरमौर ।
देश तरक्की पर है साहब,
रुपया भले हुआ कमजोर ।
शहर मिजाज़ बदल चुका है,
चलो चलें हम गाँव की ओर ।
- नीहार



6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर ...

संध्या शर्मा ने कहा…

चलो चलें हम गाँव की ओर...
बहुत सुन्दर शब्द माला...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सटीक ... सार्थक छंद हैं सभी इस लाजवाब रचना के ...

Vijuy Ronjan ने कहा…

शुक्रिया संगीता जी आपकी सराहना के लिये

Vijuy Ronjan ने कहा…

वन्दना जी,उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद ।

Vijuy Ronjan ने कहा…

दिगम्बर जी,अनुगृहीत हूँ आपकी सराहना से ।