रविवार, 25 अगस्त 2013

कुछ उक्ति कुछ कटुक्ति......

मनुज जनम जौं लीजिये,
कीजिये कुछ ऐसा काम ,
सुमार्ग पर चलते रहिये,
ले कर प्रभु का बस नाम ।
मन को साधे सब सधे,
तन को साधे वो निरोगी,
जो धन को भी साध लै,
उस से बड़ा न कोई जोगी।
करत करत उपवास के ,
शरीर होइ जात दुबलान,
हड्डी पसली सब दिखन लगे,
और गायब हुई मुस्कान ।
जात न पूछो साधु की ,
सब व्यभिचार में हैं लिप्त,
निस दिन धन अर्जन करे,
फिर भी मन ना होये तृप्त । 
चोर उचक्के बेईमान सब,
गद्दी पे हुए हैं शोभायमान,
अपना हित साधने के लिये,
पक्ष प्रतिपक्ष हुये एक समान ।
नारी जहाँ सदा थी पूजिता,
वहाँ नित होए उनका अपमान,
फिर किस मुँह से हम कह रहे,
कि है मेरा ये भारत महान ।
सोने चाँदी का हर मन्दिर में
होता नित दिन ही व्यापार,
देश दुर्दशा पे फिर शोर क्यों,
और क्यों मचा हुआ हाहाकार ।
खंड खंड हुआ उत्तराखंड और,
क्षत विक्षत हुआ हर तीर्थस्थान,
हर घायल की गति लुटी हुई,
और लाचार हुआ है भगवान ।
सीमा पर चल रही गोलियाँ,
होता घायल हर वीर जवान,
शयनागार में सुख की नींद,
ले रहा है सारा हिन्दुस्तान ।
घोटाला जो जन  नित करे ,
वो पाये सरकार से सम्मान,
जो दुंदुभी बजा पर्दाफाश करे,
उसका नित दिन होय अपमान ।
हिन्दू मुस्लिम लड़ रहे और,
यहाँ लड़ रहे सिक्ख ईसाई,
जाति धरम के नाम पर रोज,
यहाँ खोदी जाती है नई खाई ।
बच्चों का लालन पालन करे ,
जो माँ बाप करा  दुग्ध पाण,
एक पानी की बूँद को तरस,
वो बुजुर्ग फिर तज देते प्राण ।
बिजली बिन सब सून है,
क्या शहर और क्या गाँव,
धूप भी खोज रहा है यहाँ,
अपने लिये ठंडी ठंडी छाँव ।
चोरों और बेईमानों का यहाँ,
है फलता फूलता साम्राज्य,
सत्य राह पर चलना यहाँ, 
हुआ दुष्कर और त्याज्य ।
बॅालीउड के हीरो सभी ,
फिल्मों में दिखते जैसे शेर,
रियल लाइफ में वे सभी,
पर होते हैं गीदड़ भेड़ ।
राम के नाम पर लूट है,
जो लूट सके वो है राजा,
"समय अभी" पर यह खबर,
है बिलकुल ताजा ताजा ।
निहरा करता बंद अपना,
ये निरा अनर्गल प्रलाप,
वरना आपको जगाने का,
उस पर लग जायेगा पाप ।
सोये रहिये  सुख चैन से,
बिकने दीजिये यह देश,
शून्य की खोज जहाँ हुई,
वह शून्य में हो रहा शेष ।।
- नीहार ( चंडीगढ़,अगस्त २५,२०१३)

6 टिप्‍पणियां:

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

आहा...अति सुन्दर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक प्रस्तुति

Vijuy Ronjan ने कहा…

धन्यवाद निहार सराहना के लिये

Vijuy Ronjan ने कहा…

संगीता जी,शतशः धन्यवाद ।यूँ ही लिखते लिखते कुछ लिख सा गया जो सामयिक भी हैै ,और हम सबको कचोटता भी ।

Amrita Tanmay ने कहा…

सारी उक्तियाँ बहुत ही प्रेरणास्पद हैं इस आज के लिए.. मनाना चाहिए..

Vijuy Ronjan ने कहा…

धन्यवाद अमृता