उचक उचक चलत नार,
लचक जात हरसिंगार ।
मुसक मुसक देखि देखि,
दिल पर फिर करत वार ।
छम छम छम बरसे मेघ,
नाचत मयूर पंख पसार ।
कोकिल सी बोली सुन,
झंकृत मन का सितार ।
बैठी रही नदी के तीर,
करत पी का इंतजार ।
घँूघट से झाँकि झाँकि,
दूर करत हैं अंधियार ।
चंद्र समान मुखड़ा को,
तिल देत और निखार ।
नागिन सौं बल खात,
केश राशि कंठ हार ।
दिखला के एक झलक,
देती मेरा मन पखार ।
उसके एक दरस से ,
जीवन में आत बहार ।
- नीहार
6 टिप्पणियां:
खुबसूरत प्रस्तुती......
अति सुन्दर.
बहुत सुंदर ।
धन्यवाद संगीता जी ।
सराहना के लिये धन्यवाद सुषमा जी ।
धन्यवाद नीहार जी ।
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