अधर चुमत लट उडत इधर उधर,
हवा में जैसे साँप डोलडोल जात हैं।
नैन कजरारे तोरे काजर से लबलब,
पलक उठा के मेरी भोर लिये आत हैं।
बोली तेरी मधुर शहद सी मीठी मीठी,
कोयल भी गायन में पाये जात मात हैं।
तू जो रक्खे पाँव ज़मीन पे ओ रूपसी,
फूल रंग रंग के इत उत खिल जात हैं।
- नीहार(चंडीगढ,१३ जुलाई २०१३)
6 टिप्पणियां:
बहुत खूब ।
Bahut hi badhiya ... jitna bhi tarif ki jaye kam hai.
बहुत सुन्दर...
संगीता जी , नमस्कार..... सराहना के लिये धन्यवाद ।
धन्यवाद विकास ।
नमस्कार कैलाश जी,सराहना के लिये धन्यवाद ।
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