शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

यूं नींद में गफ़िल है मेरी जान ए तमन्ना,
जैसे आज है ये सुबह इतवार की....
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खोलोगी जो तुम आँख तो निकल आएगा सूरज,
तेरी पलकों ने बादल हो के उन्हे ढाँप रक्खा है....
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बस तेरी ही आरज़ू थी कई जन्मों से मुझे जानम,
जो पा लिया तुझे तो बस अब कोई आरज़ू नहीं....
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तू दबे पाँव चली आती है मुझ तक अक्सर,
मैं बंद पलकों से तेरी आहट सुन रहा हूँ.....
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सूरज से नोंच कर एक मुट्ठी धूप चुरा लिया,
यूं अपनी जिंदगी को मैंने खुशनुमा बना लिया....
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तुमको पाने के बाद कुछ और न पाने की चाह की,
खुद को खो देने का डर अब सताता नहीं मुझे.......
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