गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

मुतमइन हूँ बहुत.......


मुतमईन हूँ बहुत –

सांस लेता नहीं ,

चलता रहता हूँ पर -

मैं हूँ जीता नहीं....

पढ़ लिया सारी दुनिया के,

वेद औ क़ुरान –

जिंदगी की किताब ,

मेरी कोई गीता नहीं......

मेरे भीतर धधकती है,

ज्वाला सी जो –

उसमें चिंगारियाँ हैं,

पर  पलीता नहीं ...

मुट्ठियों में लिए हूँ –

खुद के चिता की मैं राख़,

है  सजने सँवरने का –

मुझको  सलीका नहीं।

-    नीहार

10 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति....

सादर
अनु

Anupama Tripathi ने कहा…

तृप्त हृदय ...अच्छा लिखा है ...!!
शुभकामनायें ...

शिवा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ....

Vijuy Ronjan ने कहा…

अनुपमा जी, सराहना के लिए हृदय से धन्यवाद....

Vijuy Ronjan ने कहा…

अनु जी, अभिव्यक्तियाँ प्रशंसा पा कर खिल उठती हैं...आभारी हूँ....

Vijuy Ronjan ने कहा…

धन्यवाद सुषमा जी सराहना के लिए...अनुगृहीत हूँ....

Vijuy Ronjan ने कहा…

शिव जी धन्यवाद ...उपकृत हुआ...

Amrita Tanmay ने कहा…

कमाल..

Vijuy Ronjan ने कहा…

अनुगृहीत हूँ तारीफ के लिए अमृता ....