उड़ते हुए पत्तों को दोनों हाथों से लपक लेता है ,
उसने मौसम की गवाही में ये खत लिखा होगा।
जैसे झड़ते हैं टूट कर शाख के पत्ते इस मौसम,
वैसे ही आँख को शाख कर वो झर गया होगा।
कहाँ से चुन लिए शब्द उसने अपने गीतों के ,
कहाँ से दर्द ला उन गीतों मे रच दिया होगा।
अपनी आवाज़ में भर ली होगी नदी की खुशबू ,
और फिर उसमें मौसम का रंग मिला दिया होगा।
शाम लाती है मेरी वो अपनी ज़ुल्फों की छाँव तले ,
अपनी आँखों को मेरे घर चराग उसने किया होगा।
लाख कोशिश करे पर मर नहीं पाता है ये ‘नीहार’,
तेरे लब से शायद अमृत कभी उसने पिया होगा।
5 टिप्पणियां:
अपनी आवाज़ में भर ली होगी नदी की खुशबू ,
और फिर उसमें मौसम का रंग मिला दिया होगा।
बहुत सुंदर एहसास ...
सुंदर रचना ..
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं.. ख़ुशी-गम सहकर भी हंसती रहती है..
बहुत सुंदर ....
बहुत खूबसूरत........................
अनु
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
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