न आदि हो और न अंत हो,
पर यात्रा अनंत हो ।
कर्म कुछ ऐसा करें कि,
गुंजायमान दिग दिगंत हो ।
रचें कुछ ऐसे चित्र कि ,
चहुँ ओर बिखरा बसंत हो ।
लेखनी में हो सामर्थ्य असीम ,
और विषय ज्वलंत हो ।
स्वप्न दर्शी हों हम सभी,
और हमारी कल्पना जीवंत हो ।
न ही झूठ कि खेती करें,
और न ही बातें मन गढ़ंत हो ।
- नीहार
3 टिप्पणियां:
आमीन!!!!!
सुंदर भाव.........................
सादर
अनु
असीम सामर्थ्य है लेखनी में..
न आदि हो और न अंत हो,
पर यात्रा अनंत हो ।
कर्म कुछ ऐसा करें कि,
गुंजायमान दिग दिगंत हो ।
अनुपम भाव लिए हुए उत्कृष्ट लेखन ।
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