शनिवार, 7 अप्रैल 2012

यात्रा अनन्त हो....

न आदि हो और न अंत हो,
पर यात्रा अनंत हो ।
कर्म कुछ ऐसा करें कि,
गुंजायमान दिग दिगंत हो ।
रचें कुछ ऐसे चित्र कि ,
चहुँ ओर बिखरा बसंत हो ।
लेखनी में हो सामर्थ्य असीम ,
और विषय ज्वलंत हो ।
स्वप्न दर्शी हों हम सभी,
और हमारी कल्पना जीवंत हो ।
न ही झूठ कि खेती करें,
और न ही बातें मन गढ़ंत हो ।
- नीहार

3 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

आमीन!!!!!

सुंदर भाव.........................

सादर
अनु

Amrita Tanmay ने कहा…

असीम सामर्थ्य है लेखनी में..

सदा ने कहा…

न आदि हो और न अंत हो,
पर यात्रा अनंत हो ।
कर्म कुछ ऐसा करें कि,
गुंजायमान दिग दिगंत हो ।
अनुपम भाव लिए हुए उत्‍कृष्‍ट लेखन ।