बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

मैं ख्वाब की रेत बिछाता हूँ...

बहुत याद आते हो मुझे -
पलकें बंद करूँ तो,
ख्वाब सा देखूं तुम्हे मैं -
आँख खुलते ही तुम मुझे ,
हर शय में शामिल दिख रही हो....
यह प्यार मेरा प्रसश्त करता ,
आराधना का मार्ग जानम -
चल के जिसपे,
मैं पहुँच जाता हूँ तुम तक....
मेरे थके हारे मन का विश्रामस्थल,
मेरे जन्मों की तपस्या का प्रतिफल है

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मैं ख्वाब की रेत बिछाता हूँ,
और नंगे पाँव -
तुम तक भागा आता हूँ....
मेरे बदन से चूते हुए श्वेद कण ,
उस रेत पे रात के जुगनुओं की तरह -
दमक उठते हैं....
तुम उन्हें अन्जुरिओं में उठा,
अपनी आँखों में भर लेती हो -
मैंने तुम्हारी आँखों में,
अपने लिए असीम प्यार देखा है.....
मैं उस प्यार के महासागर में -
यूँ ही डूबा रहना चाहता हूँ....
हाँ ,
मैं जीना चाहता हूँ ......

9 टिप्‍पणियां:

Yashwant Mehta "Yash" ने कहा…

bahut sundar likhi hei kavita!!!
khwab ki ret bicha kar nange paanv uss par bhagna...bahut khub!!

संध्या शर्मा ने कहा…

मैं ख्वाब की रेत बिछाता हूँ,
और नंगे पाँव -
तुम तक भागा आता हूँ....
जीने के लिए काफी है ये ख्वाबों की रेत...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मैं उस प्यार के महासागर में -
यूँ ही डूबा रहना चाहता हूँ....
हाँ ,
मैं जीना चाहता हूँ ...bahut hi sundar chaah

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति

Amrita Tanmay ने कहा…

छलके प्रेम सुधा.सागर बन...भींगे तन-मन..

विभूति" ने कहा…

भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........

Ankur Jain ने कहा…

nice poem..happy holi:)

Vijuy Ronjan ने कहा…

Dhanyavaad Ankur aapki sarahna ke liye...aapko bhi Holi ki Shubhkaamnaayein...

Amrita Tanmay ने कहा…

ये महासागर ऐसा ही होता है जिसमें डूबकर ही जी लिया जाता है .. अच्छी लगी.