सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

भ्रमित भ्रमर का ज्ञान

पुष्प गुच्छ से लदा पादप,
भ्रमर रहत है अकुलान।
किन पुष्प मुख चूम के,
करूँ मैं रस का पाण ।।
भ्रमित भ्रमर को देख के,
गुन्चन सब मुसकाय।
मधुर गुंजन श्रवण को,
सबका मन ललचाय।।
उड़ जाता कभी उधर को,
फिर जाता इस ओर।
उड़ता रहता यूँ ही भ्रमर,
थामे लालच की एक डोर।।
एक पुष्प कहे विहँस के ,
प्रियतम आओ मेरे पास।
मैं तुमको आओ देती हूँ,
जीवन दायिनी श्वास॥
तभी दूसरी बोल उठी,
जाना तुम उत ओर।
मेरे पास आओ प्राण मेरे,
तुम हो मेरे सिरमौर॥
बोल उठी मादक रस पूरित,
मकरंद युक्त एक रतनार।
मेरे पास रहो तुम भँवरे,
कम से कम दिन चार॥
भ्रमित भ्रमर थक हार कर,
बैठा कंटक युक्त एक डाल
रस था गंध वहां थी ,
मकरन्दी माया जाल॥
पर थी नीरव शांति वहां,
और था वहां सुख संतोष।
था रूप रस रंग वहां ,
पर था आनंद का एक कोष॥
भ्रमर समझ गया सुख का मूल,
नहीं रूप रस रंग और राग
सुख का मूल तो संतोष में ,
सुख का मूल है त्याग
उड़ता उड़ता भ्रमर पुनः ,
जा पहुंचा पुष्प के पास।
रक्खो अपना रूप रंग ,
और रक्खो अपना सुवास॥
ये सब नहीं सुख के मूल,
ही इनसे मुक्ति है मिलती।
ही इनसे इंसान के अन्दर,
सुवाषित पुष्प है खिलती॥
तुम्हे अगर सच में करना हो,
मधु रस का ही पाण
तो फिर तुम नित किया करो,
अपने निज का नित दान॥
दान से बड़ा पुण्य नहीं कोई,
बड़ा कोई तीरथ ध्यान।
ही पूजा इससे बड़ी कोई,
ही बड़ा कोई है स्नान॥
कंटक ने लोलुप भ्रमर को,
कर दिया संत समान।
भ्रमर गुण गुण कर बांच रहा,
अपना ताज़ा ताज़ा ज्ञान॥
- नीहार (२०/०२/२०१२)

7 टिप्‍पणियां:

Amrita Tanmay ने कहा…

भ्रमर ने तो ज्ञान प्राप्त कर लिया पर हम हैं कि आँख-कान बंद किये रहते हैं.. अद्भुत भाव प्रवाह...

vandana gupta ने कहा…

कंटक ने लोलुप भ्रमर को,
कर दिया संत समान।
भ्रमर गुण गुण कर बांच रहा,
अपना ताज़ा ताज़ा ज्ञान…………………बेहद उम्दा और सार्थक प्रस्तुति यही तो जीवन दर्शन है।

विभूति" ने कहा…

गहन अभिवयक्ति......

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

vidya ने कहा…

सुन्दर..मनोहारी प्रस्तुति..

sangita ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

भ्रमर ज्ञान रोचक है