सोमवार, 31 मई 2010

गनीमत है की दिन के बाद रात होती है

गनीमत है की दिन के बाद रात होती है,

उनसे कुछ पल ही सही मेरी बात होती है।

ख्वाब में ही दिखते हैं आजकल वो अक्सर ,

उनसे यूँ ही हर दिन मेरी मुलाकात होती है।

भींगी जुल्फों को जब भी जोर से झटकती हैं

मेरे घर बिन बादल ही फिर बरसात होती है।

उनसे मिलता हूँ तो बातें चेहरे पे आ जाती हैं,

वो भी मुझसे मिल कर खुली किताब होती है।

मेरे हाथों में जब भी वो चाँद बन उतर आता है,

ज़िन्दगी मेरी तब सबसे ज्यादा नायाब होती है।

4 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah bahut khoob...

आचार्य उदय ने कहा…

मनमर्जी।

पंकज मिश्रा ने कहा…

विजय जी अक्सर एेसी कविता लिखते हैं

यही तो उनकी करामात होती है।

क्यों साहब। है कि नहीं।


http://udbhavna.blogspot.com/

श्यामल सुमन ने कहा…

गनीमत है की दिन के बाद रात होती है,
उनसे कुछ पल ही सही मेरी बात होती है।

अच्छी लगा पढ़कर। सुन्दर।


सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com