बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

मैंने उसकी जुल्फ में जो उँगलियाँ फेरीं,हाथ खुशबु में मेरे देर तक महकते रहे,
उसकी पलकों को जो चूमा मैंने ऐ दोस्त,हम बिना पिए ही देर तक बहकते रहे।
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उनको अगर भूल जाने को कहोगे मुझसे,तो भला क्यूँ न मैं खुदा को भूलूं,
जी चाहता है हेर वक्त ऐ दोस्त मैं,सिर्फ़ और सिर्फ़ उंनकी यादों में झूलूं।
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रात पलकों पे सितारे सा सजाया उनको,और फिर देर तक उस रौशनी में नहा आए,
जब कहीं लगा की वो दूर हो गए हमसे, हम हवा की तरह जा कर उन्हें छू आए।
उंनके छूने से जी गए पल भर हम , और रात आंखों में सपनो की बारात आयी,
उनके सिरहाने जो फूल रक्खे थे हमने, देर तक उन् फूलों की हमें खुशबु आयी।
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मुझे तुम याद आते हो...
सुबह जब रौशनी छन कर फूलों पे बरसती है,
सुबह ओस की बूंदों में एक शबनम तरपती है,
सुबह जब चिरियों के गले से एक विरह के गीत सुनता हूँ,
मैं अपनी धरकनो में उस वक्त तुम्हारे ख्वाब बुनता हूँ...
मुझे तुम याद आते हो...बहुत तुम याद आते हो॥
दिन की तपती धूप जब मुझको सहलाती है,
बहती हुयी पुरवाई जब मुझे सहलाती है,
किसी पायल की खन खन से जब मुझे कोई बुलाता है,
मधुर संगीत की धुन पर कोई गीत गाता है,
मुझे तुम याद आते हो...अक्सर याद आते हो।
शाम में जब कोई चिरागों को जलाता है,
दिन के थके पखेरुओं को जब कोई लोरी सुनाता है,
जब किसी घुंघरू की खनक से मन को दुलराता है,
चांदनी में गूँथ के कोई तेरी खुशबु ले आता है,
मुझे तुम याद आते हो...बहुत तुम याद आते हो...

2 टिप्‍पणियां:

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

मैंने उसकी जुल्फ में जो उँगलियाँ फेरीं,हाथ खुशबु में मेरे देर तक महकते रहे...

बहुत ख़ूब...

Vinay ने कहा…

चांदनी में गूँथ के कोई तेरी खुशबु ले आता है,
मुझे तुम याद आते हो...बहुत तुम याद आते हो...

क्या ग़ज़ब ढाने वाली बात कर दी, वाह!