शनिवार, 13 सितंबर 2008

जब जब तुम गुनगुनाना चाहो, में लफ्ज़ बन तेरे होँठों पे उतर जाऊँगा,
जब भी तुम कोई ख्वाब देखोगे सनम, उसमें मैं ही मैं नज़र आऊंगा,
तू मुझे अपनी धरकनों में पाएगी, में तुझे अपनी धरकनों में पाऊंगा।
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अपने होठों से चूम कर ईनाम दो मुझको, कजरारे आँखों से तुम थाम लो

तुम्ही ने सिखलाया है प्यार का मतलब, प्यार का हर पल तुम जाम दो मुझको।

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मेरे करीब आओ की तुम्हे चूम लूँ, हाथों में तेरे हाथ लिए कुछ देर घूम लूँ।

तुम ताज़ी हवा का झोंका हो, आ भी जाओ की तेरी खुशबु में कुछ पल झूम लूँ।

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उतर रही है आसमा से चांदनी धीरे धीरे, गूंज रही है प्यार की रागिनी धीरे धीरे।

आपकी आँख में नींद का बुलावा है, छा रही है देखो हर ओर यामिनी धीरे धीरे।

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चंचल चंचल तेरे दो चितवन, कारे कारे हैं उनमें अंजन।

कोमल कोमल रस भरे अधर, संगमरमर सा है गुदाज़ बदन।

आवाज़ तेरी जैसे है जलतरंग, साँसे तेरी महके जैसे चन्दन।

मुझको दीवाना कर देती है मुझको ,तेरे दिल में मेरी धड़कन।

तुम एक नज़र जो देखे हमको, हो जाए सफल मेरा जीवन।

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तेरे लबों के मुकाबिल कोई गुलाब नहीं, तू लाजवाब है तेरा कोई जवाब नहीं।

मैं तो हर वक़्त तेरी आँखों से पीता हूँ, है इन से बढ़ कर कोई शराब नहीं।

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निगाहें बचा कर तुम मुझे अपनी किताब देना,

किताब में छुपा कर तुम मेरे ख़त का जवाब देना ।

तुम अगर लिख न पाओ कुछ तो कोई बात नहीं,
कागज़ के बदले तुम उसमें मुझको गुलाब देना।

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1 टिप्पणी:

सुशील छौक्कर ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना। दिल खुश हो गया।